गा रही है ज़िंदगी हर तरफ़ प्रदीप

गा रही है ज़िंदगी हर तरफ़

प्रदीप | अद्भुत रस | आधुनिक काल

गा रही है ज़िंदगी हर तरफ़ बहार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये

आ गया आँचल किसी का आज मेरे हाथ में 
है चकोरी आज अपने चँद्रमा के साथ में
चल पड़ी दो किश्तीयाँ आज एक धार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये
गा रही है ज़िंदगी हर तरफ़ बहार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये

छू रही तन मन को मेरे प्रीत की पुरवाइयाँ
दूर की अमराईयों में गूँजती शहनाईयां
सौ गुना निखार है आज तो सिंगार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये
गा रही है ज़िंदगी हर तरफ़ बहार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये

ज़िंदगी भर के लिये तू बाँह मेरी थाम ले 
जब तलक ये साँस है हर साँस तेरा नाम ले 
इक नयी दुनिया खड़ी अपने इंतेज़ार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये
गा रही है ज़िंदगी हर तरफ़ बहार में किस लिये
चार चांद लग गये हैं तेरे मेरे प्यार में इस लिये

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