वक़्त
वो वक़्त हमारा था अब वक़्त कहाँ अपना,
जब दिल टूटा जब प्यार हुआ, जब तुमसे मिले इकरार हुआ,
जब इश्क़ मे था ये जहाँ झूठा, जब आँख खुली जब सब छूटा,
वो वक़्त हमारा था अब वक़्त कहाँ अपना।
जब उसकी बातों में था ज़िक्र हमारा भी,
जब उसके सजदों में था फिक्र हमारा भी।
जब आँसू थे पर असली थे, झूठी मुस्कान न थी,
जब अंधेरे से डरते थे पर कल की फिक्र न थी।
जब जेब में पैसे तो ना थे, पर दिल में इरादे थे,
जब कहने को जागिर ना थी पर हम शहजादे थे
वो वक़्त हमारा था, अब वक़्त कहाँ अपना
जब इश्क़ में तेरे सब देखा, गुस्सा भी मोहब्बत भी।
जब बैठ के कितनी बातें की, तुमसे भी तुम्हारी भी,
तारों के नीचे सोए जब, सोने के बहाने रोए जब,
फिर दिल बहलाना सीख गए, हँसने का बहाना सीख गए,
जिसको कल तक थी खबर सारी उस माँ से छुपाना सीख गए।
फिर इश्क़ हुआ, फिर यार मिले, फिर कई नए संसार मिले,
पर माजी में जो था, जिस दुनिया में तू था,
वो वक़्त हमारा था, अब वक़्त कहाँ अपना