केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए, उसमे उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए। (श्री मैथिलि शरण गुप्त)
रुको ! वो आएँगे
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बहुत पढ़े लिखे आदमी हो भाई !
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मन
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प्रतिमान
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लाशें गल गईं!
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बुढ़िया
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आँसू
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मैं कुंटल भर खाऊँगा
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राम को अंदर बुलाना है !
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