प्रकृति EKTA Upadhaya
प्रकृति
EKTA Upadhayaप्रकृति कुछ कह रही है-
फूल पत्ते कली गुन्चे
बाग खिलता दिख रहा है
हैं दिशायें आज पुलकित।
धरा का मन हँस रहा है,
आसमां का हर किनारा
नीलाभ सा हो गया है
है हवा में कुछ नया जो
चाँद हंसता दिख रहा है।
पक्षियों की चहचहाहट
कानों में सुनाई दे रही है,
नीड़ में जब लौटते हैं
हृदय उनका खिल रहा है।
नदी की कल कल में
तटबंध पावन हो रहे हैं,
कंक्रीट के जंगलों से
पर्वत भी दिखाई दे रहा है।
प्रकृति के दर्पण से हमने
धूल पोंछी आज जो,
इस छोर से उस छोर तक
सब कुछ नया सा हो गया है।
कुछ दिनों की कृत्रिमता
छोड़ हम बैठे घरों में,
है धरा पावन हुई
एकांत रंग दिखला रहा है।
जय माँ वसुंधरे