वीरों को नमन विकास वर्मा
वीरों को नमन
विकास वर्मालिख रहा मेय काव्य कृति
उन वीरों के नाम,
जिसका सर्वस्व लुट गया
मातृभूमि को नाम।
रखता मैं पल-पल प्रीति
उन वीर जनों के नाम,
जिसका सर्वस्व लुट गया अब
इस देश के नाम।
अंबा की पीड़ा तुम क्या जानो
जानती वो जग सार,
जिसने देखा करूण नैन से
होता पुत्र का संहार।
जोरू की वो प्रेम की ललसा
जाने यह सारा संसार,
जिसने कर दी मातृभूमि को
प्रेमी-बेला निसार।
बेकार में मानुष तुम करते हो
पूजा - पाठ - हवन,
कुछ नहीं मिलने वाला है
बेर करम कोई किरण।
करना है तो करो सदा जग
उन राष्ट्र वीरों को नमन,
जिसने निछावर कर दी यहाँ
अपना सर्वस्व तन-मन।
मंदिर मस्जिद तो मात्र हैं
भ्रम की दुनियाँ सार,
आज तक प्रभु मिला नहीं
जो गया इनके द्वार।
महान कबीरा कह गए जहाँ
सब है माया का अपार,
खुदा! तो सदा उसमें बसे
जिसने किया कोई उपकार।
कण-कण में, जन-जन में बजे
सदा उनकी वीर धुन,
मातृभूमि की रक्षा खातिर
कुर्बान हुआ जो खून।
कष्ट पीड़ा सह हरदम
रह पल-पल होशियार,
दुश्मनों में मचा दे वो
अपनी वीरता की हाहाकार।
रह देश वीरों के साथ सदा
जन-जन का प्रेम निसार,
सबजन मिलकर करें मन से
वीरों की जय-जयकार।
अपने विचार साझा करें
मनुष्य की मन से निकली वह धारा जो गीत के रूप में प्रविष्ट हो जाती है। आज हमारी रक्षा के कितने वीरों ने अपनी कुर्बानी दे दी। न जाने कितनी माताओं की कोख खाली हो गई, न जाने कितनी नारियों का सर्वस्व देश के लिए कुर्बान हो गया। मेरी कविता का भाव उन सभी वीरों को समर्पित है जिन्होंने हमारी रक्षा की खातिर सबकुछ राष्ट्र को समर्पित कर दिया।