पथ-ए-जन्नत! विकास वर्मा
पथ-ए-जन्नत!
विकास वर्माखुदा! के परिंदे तू जमीं आसमां बन जा,
दिलों की ज़ागीर में वीर महान बन जा!
टूट चुके आईने जो बाँधे तुम आश़ियाने,
बेवफ़ा के नज़रों में दिले अरमां बन जा!
नापाक रिश्त़े बेज़ान कर दिलरुब़ा वास्ते,
खुदा! के जन्नत में दिलों ज़ान बन जा!
मिटा दे तू हुस्न की रूख़सत बैरीयों को,
राष्ट्र की सरहदों पर...गुलफ़ाम बन जा!
चलती राहों में मिलेंगे कई बे-इख्त़ियारी,
खुदा! फ़रिश्ते तू उन्हें चश्म जहां बन जा!
खिलती जवाँ कर स्वधरा में तुम अर्पित,
माँ भारती के चरणों में कुर्बान बन जा!
अपने विचार साझा करें
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का यही लक्ष्य होना चाहिए कि वह समयानुसार अपने जीवन पथ की पहचान कर ले। जन्नत तो वो होती है जहाँ खुदा की चश्मे बहार है। आज के भटकते युवाओं को प्रेरित करती मेरी रचना....जो अपनी वीर जवानी को मातृभूमि को समर्पित करने के बजाय-प्रेमिका की उस प्रेम में जन्नत की दुआएँ माँग रहा है जहाँ दुआ के बदले गम के फसाने मिल रहे हैं।