कल्पना Tanushri Das
कल्पना
Tanushri Dasमेरी कहानी है सबसे जुदा
खाली मन है सूना पड़ा,
एक हलचल सी हो जाती है
जब यादें याद आती हैं।
अकेलापन था इतना प्यारा
दूर कर दिया सबको यारा,
पर अपनी कल्पनाओं को
भरने दी उड़ान,
जिनका ना था कोई मान
और ना था वास्तविकता में कोई स्थान।
सब जानकर भी बनती थी अंजान,
क्या है मेरी पहचान?
कल्पनाएँ तो अंतहीन होती हैं,
पर असली खुशियाँ तो वास्ताविकता ही देती है।
कल्पना सुनने मे कितना प्यारा,
बुनों तो एकदम निराला,
बोलो तो लगे सच्चा सारा,
पर असलियत में ये है, झूठों का पिटारा,
अभी के अभी खाली करना होगा सारा,
वरना जीना कर देगा दुश्वार,
ये कल्पनाओं का भंडार।
लोग कहते हैं, ज़रा कल्पना करके तो देखो
तभी तो वो सब सच में होगा,
पर ना हुआ तो
कौन होगा जिम्मेवार?
क्या भूल पाएगा ये मन
उन कल्पनाओं को हर बार?
टूट कर बिखर तो नहीं
जाएगा ना इस बार?
इस असमंजस में मेरा मन
कल्पना करने से घबराता है,
क्या इन घबराहटों के बिना
कोई भी ये जीवन जी पाता है?