एक स्वप्न Harshita Singh
एक स्वप्न
Harshita Singhजीवन तुम संग
इतना हर्षित,
जैसे हँसता हो
अमलतास।
जैसे धूप ने कर ली हो
बादल से दोस्ती,
जैसे फिर से उठ बहने लगी हो
भीगी कागज़ की कश्ती।
जैसे तुम हो शिखा दीप की
और मैं झूमती हुई छाया,
जैसे प्यासे पथिक की खातिर हो
पोखर खुद चल के आया।
कितनी भी हो राहें तंग
तुम संग सुगम हैं लगती,
जैसे पथरीली राहों में नदियाँ
फिसलती और संभलती।
आसमान को देखूँ क्या
मौसम रोज़ बदलते,
मेरी बेरंग दुनिया में तुम
इंद्रधनुष से लगते।
जाने कितना साथ लिखा है
मेरा और तुम्हारा,
इसीलिए तो तुम संग बीता
हर क्षण मुझको प्यारा।
स्वप्न आँखों में लिए विचरती
हो कुटुंब प्यारा तुम्हारे संग,
गर्भनी गौरैया जैसे चोंच में
तिनका दाबे घूमे अनंत।