सूनी दुपहरिया Reena Gupta
सूनी दुपहरिया
Reena Guptaचिलचिलाती खामोश धूप में
गरम हवा के थपेड़ों से,
ज़िंदगी के
सूखे पत्तों
की आवाज़,
सूनी दुपहरिया में
खोखली और बेजान है।
इस जीवन का प्रत्येक पल
जिजीविषा की आशा में
बीताराधी बन चुका है।
गरम लू की तपन,
पिघलती ज़िंदगी,
आग उगलती दुनिया,
सूखी नदी में
रास्ते खोजती,
असफ़ल,
हताश।
सूनी दुपहरिया का
टकटकी लगाए सूनापन,
ज़िंदगी को बाहों में समेट
विस्तार गगन की उड़ान भर,
गहरी रात कि गोद में
सो चुका है।
शांत ज्वालामुखी सा जीवन,
एक बेगानी दुपहरिया
में परिवर्ति
हो चुका है,
किसी का इंतज़ार,
पैरों की वह आवाज़,
ना जाने
कहाँ खो चुकी है,
शायद सूनी दुपहरिया
के सूनेपन में।