जीवन चक्र  Reena Gupta

जीवन चक्र

Reena Gupta

जीवन की लम्बी डगर में
चलते हुए राही,
मंज़िल के इंतज़ार में
वक़्त के थपेड़े खा कर,
मिट्टी में दफ़न
हो जाते हैं,
फिर उठाते हुए नए कदम,
मंज़िल की खोज में
लग जाते हैं।
 

कुछ रह जाते हैं
धूल में दब कर,
और कुछ दफ़न हो
जाते हैं
आँधियों में।
 

यह अविचल जीवन चक्र
चलता रहता है,
नए आयाम,
नए कदम,
बनते और बिगड़ते रहते हैं।
 

और जिनको मिलती
नहीं मंज़िल,
वे राहों में भटक कर,
अंतहीन गलियों में ख़ोकर,
जीवन को अपंग बना कर,
मुश्किलों से पराजित हो कर,
कंकालों के चिह्नों को
जीवन देते हैं।
 

अपंग हुई इस ज़िंदगी को
लादे हुए,
शाम के इंतज़ार में,
मंज़िल के करीब,
अपने शरीर को छोड़,
आत्मा का लिबास पहन
उड़ जाते हैं
खोज में किसी अनंत की
और उठती हैं निगाहें
धरती पर बची जिन्दगियों की,
सामने बुझते हुए
अन्धकार के दीपक की ओर।
 

बसने लगता है
फिर वही अँधेरा,
उठती हुई नई निगाहों में,
एकटक देखती हुई
सूखी हुई दृष्टियों में।

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