अभिलाषा Shivam Parashar
अभिलाषा
Shivam Parasharबागों में फूल हो,
मैदान में धूल हो,
चिलचिलाती गर्मी में
बरगद की छाया हो।
खेल का मैदान हो,
खेत हो खलियान हो,
मौसम हो बारिश हो,
मौज भरी शाम हो।
रात की अंगराई हो,
सुबह की पुरवाई हो,
काम हो काज हो,
ना कोई उदास हो।
दुनिया में बच्चे हों,
आँखों में सपने हों,
सूरज सा दमके वह,
नभ अपना निर्मल हो।
जल अपने शीतल हो,
पृथ्वी सुरक्षित हो,
सब कोई अपने हो,
जात हो न पात हो।
न धर्म की ही बात हो,
प्यार की फुहार हो,
हर रोज रविवार हो,
मेरी अभिलाषा है।