बेटी - मेरा अभिमान  VIKAS UPAMANYU

बेटी - मेरा अभिमान

प्रस्तुत कहानी के माध्यम से बेटी और बेटो में अंतर न करने और दोनों को समान समझने पर बल दिया गया है।

लड़के वालों के आने का समय हो गया था लेकिन शीतल अभी तक तैयार नहीं हुई थी। उधर बार-बार दादी चिल्ला रही थी, “हो गयी तैयार? ये लड़की कुछ नहीं कर सकती, हमारी नाक कटवा कर ही रहेगी।” तभी शीतल की माँ बोली, "बेटी जल्दी से तैयार हो कर आओ मेहमान आने वाले हैं।"

शीतल चुपचाप रहकर माँ की बात मानते हुए तैयार होने चली गई।

कुछ समय पश्चात लड़के वाले आ जाते हैं, आपस में दोनों परिवारों की बातें शरू हो जाती हैं। लड़का शीतल बहुत से सवाल पूछता है, शीतल सभी सवालों का बड़ी शालीनता से जबाब देती है।

देव, शीतल को बोलता है, "आपको मुझसे कुछ पूछना हो या अपनी कोई इच्छा बताना चाहते हो तो बता सकते हो।"

"जी ज़रूर", शीतल बोलती है, शीतल के ये शब्द सुनते ही दादी बोल पड़ती है इसकी कोई इच्छा नहीं हमे सब पसंद है।

लेकिन देव के बार-बार आग्रह करने पर शीतल बोलती है, "मैं अपनी पढ़ाई को आगे जारी रखना चाहती हूँ और भविष्य में नौकरी करना चाहती हूँ जिससे मैं आत्मनिर्भर हो सकूँ और अपने घर को चलाने में अपने परिवार का साथ दे सकूँ।"

शीतल की ये बात सुनते ही देव की माँ अपने पति से बोली, "चलो जी हमें ऐसी लड़की नहीं चाहिए जो घर से बाहर नौकरी के लिए जाए और सबके सामने ऐसे बड़ -बड़ बोले।”

मेहमानों के चले जाने के बाद शीतल की दादी ने शीतल और उसकी माँ को बहुत भली बुरी सुनाई, "इसने ही सिर पर चड़ा रखा है, ये हमारी नाक कटवा कर ही रहेगी।" दादी की बात सुनकर दोनों माँ-बेटी रोने लगीं।

ऐसे ही समय बीतता गया, शीतल बहुत मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई करती रही, रोज़ दादी के ताने सुनने पड़ते लेकिन फिर भी उसने अपना लक्ष्य नहीं छोड़ा।

रेलवे में उसने नौकरी के लिए आवेदन किया, उसकी मेहनत रंग लाई उसका रेलवे में स्टेशन-मास्टर के पद पर सिलेक्शन हो गया।

इस बात का सबको पता चला तो सब शीतल और उसके घरवालों को बधाई देने लगे अब दादी भी शीतल को बहुत ही प्यार से बोलने लगी।

शीतल के लिए एक से बढ़कर एक अच्छे रिश्ते आने लगे, पूरे परिवार के लिए मानो बहुत ही अच्छा समय आ गया हो इसकी अनुभूति सब करने लगे।

दादी ने शीतल को पास बैठाया और बोली, "बेटी मैंने हमेशा लड़कों को ही अच्छा समझा जो मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी मेरी पोती-बेटी ही मेरा अभिमान है।"

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