Jay yadav
मेरे घर के आँगन में गूँजी आज किलकारी है
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बुझकर भी जलना आता है
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हे मानव कैसे भटक गया
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मैं कैसे पहचान करूँ
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साँवली सूरत में
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कुछ रुप नए दिखलाना है
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