हे मानव कैसे भटक गया  Jay Singh Yadav

हे मानव कैसे भटक गया

Jay Singh Yadav

हे मानव कैसे भटक गया है अपने निज कर्तव्यों से,
उलझ गया कैसे अपने ही निज हथकंडों में।
माँगा था जब जीवन तुमने ऊपर बैठे विधाता से,
शपथ लिया था तुमने पहले इस धरा पर आने से।
 

कर्म करूँगा निष्ठा से सत्य राह पर चलने की,
दुर्लभ पथ पर भी सत्य से न मुँह हम मोड़ेंगे।
माँ-बाप की सेवा का कोई अवसर न छोड़ेंगे,
गुरुवर के आदर्शों पालन हम करते ही जाएँगे।
 

दीन दया का पात्र अगर दिख जाए कोई राहो में,
मंजिल तक पहुँचाना अपना धर्म सदा हम समझेंगे।
यदि दिख जाए भूख प्यास से व्याकुल कोई,
आहार व्यवस्था में उसके हम तनिक नही सकुचाएँगे।
 

लोभ मोह माया को हम हृदय में न आने देंगे,
नफरत जैसे बीजों को हृदय में न उगने देंगे।
दया क्षमा का बीज हम अपने दिल मे रोपेंगे,
प्रेम के अमृत जल से नफरत को हम सींचेंगे।
 

पशु हो या पक्षी कोई सबसे प्रेम करेंगे हम,
जीव जंतु से भी हम स्नेह का नाता जोड़ेंगे।
सर्वश्रेष्ठ प्राणी का परिचय जग को देकर आएँगे,
हे मानव कैसे भटक गया अपने निज कर्तव्यों से।

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