स्वभाव से मैं अन्तर्मुखी हूँ। अपने आसपास के परिवेश और देश-दुनिया में घटित होती घटनाएँ मुझे लिखने पर विवश करती हैं। घटनाओं पर सोचकर उसपर विश्लेषण करना मेरी आदत है जो शब्दों के रूप में व्यक्त होती रहती है।
लेखक साक्षात्कार - आशीष दलाल (कहानी संग्रह "उसके हिस्से का प्यार" के लेखक)
ग्वालियर (म.प्र.) में जन्मे, खरगोन (म.प्र.) में पले बढ़े और बड़ौदा (गुजरात) में स्थाई रूप से बस चुके आशीष दलाल मानवीय संवेदनाओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति देने में माहिर हैं। उनके सरल, सहज व्यक्तित्व की छाप उनके लेखन में उतरती रहती है। उनकी १०० से भी अधिक रचनाएँ विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘उसके हिस्से का प्यार’ उनका प्रथम कहानी संग्रह है। साहित्य सृजन कार्य में लगे आशीष पेशे से बड़ौदा की एक प्रतिष्ठित फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। उनके प्रथम कहानी संग्रह के प्रकाशन पर मातृभाषा.कॉम को दिया साक्षात्कार आपके समक्ष प्रस्तुत है।
लेखन की शुरुआत मैंने समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में पत्र लेखन से की थी। पत्र लेखन से शुरू हुई अभिव्यक्ति धीरे-धीरे लघुकथा का रूप लेने लगी। लघुकथा और कहानी मेरी प्रिय विधा हैं। इसके अतिरिक्त लेख, संस्मरण, नाटक तथा यदा कदा कविताओं पर भी मेरी कलम आसानी से चलती है।
ज्यादा दूर नहीं जाता हूँ। अपने एक पुराने दोस्त को काफी सालों के बाद मेरी पहली पुस्तक के प्रकाशन के कुछ दिनों पहले मिलना हुआ। पुरानी बातों का स्मरण करते हुए वह मुझे अपने स्कूल और कॉलेज के समय में खींच ले गया। कहने लगा ‘यार, जब हम सब क्रिकेट, गिल्ली डंडा खेलने और लड़कियों को देखने में मस्त रहते थे तब तू हमें अपना विषय बनाकर कहानियाँ लिखकर नाम कमाने में लगा हुआ था। कई बार हम तुझ पर हँसते भी थे पर आज गर्व होता है कि कहीं न कहीं तेरी जिन्दगी में हमारा नाम भी शामिल है।’ उस वक्त दोस्तों की हँसी का बुरा मानकर अगर कलम छोड़ देता तो शायद ‘उसके हिस्से का प्यार’ आज न होता।
‘मेरा प्रथम कहानी संग्रह ‘उसके हिस्से का प्यार’ पढ़ने के बाद कुछ लोगों ने प्रतिक्रिया स्वरूप कहा कि संग्रह की एक या दूसरी कहानी हमें हमारी खुद की या अपने परिचितों की जिन्दगी की कहानी प्रतीत होती है। जब पाठक किसी अनजान व्यक्ति द्वारा लिखी कहानियों से अपने को जुड़ा पाने लगे तो यह लेखक के लेखन की सफलता और सार्थकता होती है। एक लेखक घटनाओं को कल्पना के रंग से रंग कर उसे शब्दों से श्रृंगारित कर अपने पाठकों के समक्ष इस तरह से पेश करता है कि उसमें कुछ हद तक वास्तविकता न होते हुए भी हर किसी को वह कहानी अपनी सी लगे।
मैंने लेखन की शुरुआत जब मैं १५ साल का था तब ही से कर दी थी । लेखन के शुरूआती दौर में भोपाल से निकलने वाली ‘चकमक’ बाल पत्रिका में मेरी अभिव्यक्ति सादे शब्दों में प्रकाशित होती रहती थी । फिर कुछ अनुभव होने पर जयपुर से निकलने वाली बाल पत्रिका ‘बालहंस’ में बाल कहानियाँ प्रकाशित होने लगी । प्रकाशन का दायरा बढ़ते हुए दैनिक भास्कर, नईदुनिया, सुमन सौरभ, चौथा संसार, दैनिक ट्रिब्यून आदि राष्ट्रीय स्तर के पत्र पत्रिकाओं तक पहुँच गया । इस मुकाम तक पहुँचने के पहले अम्बाला छावनी हरियाणा के कहानी लेखन महाविद्यालय एवं इसी विद्यालय की मुखपत्रिका ‘शुभतारिका’ का मेरी लेखनी को तराशने में बेहद योगदान रहा है ।
कॉलेज की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद लेखन और प्रकाशन का सिलसिला जीवन में आर्थिक और सामाजिक रूप से एक मुकाम पर पहुँचने तक लगभग थम सा गया था । ‘उसके हिस्से का प्यार’ लगभग १३ साल के विराम के बाद लेखन के क्षेत्र में फिर से सक्रिय होते हुए पाठकों को पुस्तक के रूप में मेरी पहली भेंट है।
दुनिया में हर इंसान के पास कहने को कम से कम एक कहानी अवश्य होती है पर इस कहानी को शब्दों का श्रृंगार कर पेश करने का हुनर सभी के पास नहीं होता । सच कहूँ तो कहानी लिखने के लिए मुझे काफी सोचना या परिश्रम नहीं पड़ता है । जीवन में देखी, सुनी और घटित कोई भी संवेदनशील बात मेरे लेखन का विषय बनकर कहानी के रूप में व्यक्त हो जाती है । किसी अत्यन्त अहम मुद्दे पर कहानी लिखना थोड़ा मुश्किल जरुर होता है क्योंकि एक कहानीकार के रूप में सभी पात्रों के साथ न्याय करते हुए पाठकों को घटना का एक समाधान भी देना होता है । कई बार जब मुझे कहानी का अंत नहीं सूझ रहा होता है तो उस पर विचार करते हुए रात को मैं सो जाता हूँ और सुबह तक एक पूरी कहानी मेरे दिमाग में तैयार हो जाती है । यहाँ शर्त यही होती है कि कई दफा मुझे आधी रात को या सुबह बहुत जल्दी उठकर भी मन में उठते भावों को शब्दों के रूप में उतार लेना पड़ता है । संग्रह में समाहित ‘एक रात की मुलाकात’, ‘अंतिम संस्कार’, ‘अग्नि परीक्षा’ एवं ‘तुम्हारा हिस्सा’ ऐसी ही कहानियों में से है जो मैं आसानी से नहीं लिख पाया। एक कहानीकार अपने पाठकों की भावनाओं के साथ कभी भी खिलवाड़ नहीं कर सकता । बस यही बात उसे अपने कहानी के पात्रों के साथ भी अमल में रखनी होती है और यही बात सबसे कठिन होती है क्योंकि कहानीकार को खुद ही सारे पात्रों की संवेदनाओं को व्यक्त करना होता है ।
प्रेम पाने के लिए प्रेम करना जरुरी है यह बात मैं अक्सर कहता रहता हूँ । जिन्दगी में प्रेम को अलग से परिभाषित करने की जरूरत नहीं होती है । यह तो हर इन्सान में जन्म से ही मौजूद होता है । वह सर्वशक्तिमान अदृश्य शक्ति बच्चे की आंखों में प्यार भरकर ही भेजती है । बच्चा आप ही पहली नजर में ही अपनी माँ से प्यार करने लगता है । फिर तो जिन्दगी के हर एक पड़ाव पर वह प्यार के जरिये ही तो रिश्ते जोड़ता है । प्यार करने या व्यक्त करने के लिए मौके तलाश करने की जरूरत ही नहीं होती । जिन्दगी ये मौके दिन में कई बार देती है । बचपन में माँ, फिर शादी होने तक बहन, (कुछ किस्सों में प्रेमिका की भी मौजूदगी होती है) और शादी हो जाने के बाद पत्नी। कहते हैं, मातृत्व प्राप्त कर एक स्त्री सही मायनों में पूर्णता को प्राप्त होती है। माँ बनकर उसका स्त्रीत्व धन्य हो जाता है । मैं कहता हूँ, एक स्त्री को सच्चे दिल से प्यार करने पर पुरुष पूर्णता हासिल करता है। उसका पुरुषत्व शक्ति जताने से नहीं एक स्त्री का सम्मान करने से उजास को प्राप्त होता है।
अगर आँखों में एक अहसास को पाने की प्यास सदैव हो तो प्यार को ढूँढने की जरुरत नहीं होती। सम्बन्ध प्यार के धरातल पर ही पनपते हैं। इस एक शब्द की व्याख्या सम्बन्धों के हिसाब से बदलती रहती है। प्रेमी-प्रेमिका के रूप में यह रोमान्स बन कर आता है। पति पत्नी के बीच पहले आकर्षण, फिर सामंजस्य के रूप में बहने लगता है । माँ बेटे के सम्बन्ध में यह वात्सल्य कहलाता है। भाई बहन के रिश्तों में यह स्नेह के रूप में मौजूद होता है। पर सच्चाई तो यह है कि प्यार के हर रूप में एक स्त्री की मौजूदगी इसे जीवन्त बना देती है। वह उसे सब कुछ सौंपकर कुछ पाना चाहती है तो पुरुष भी उसे भरपूर प्रेम देकर कुछ पाना चाहता है। इसी कुछ को पाने की कशमकश में दुःख – दर्द, घुटन, स्वार्थ, विरह, इन्तजार और थोड़ी सी बेवफाई जाने अनजाने में उसके हिस्से के प्यार में शामिल हो ही जाते हैं। बस यही प्यार है।
साहित्य की सार्थकता तभी होती है जब वह व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया को एक नई दिशा प्रदान करे। अच्छा साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं होता है अपितु इससे जीने की राह मिलती है। जो भावनाएँ बोलकर व्यक्त नहीं की जा सकती वह शब्दों के रूप में आसानी से कही जा सकती हैं।
लोग आजकल अंग्रेजी साहित्य पढ़ना ज्यादा पसन्द करते हैं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हिंदी साहित्य का भविष्य उज्जवल नहीं है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और ज्यादातर प्रदेशों में यह मातृभाषा भी है। आजकल के कई युवा लेखक हिंदी में भी अपनी अभिव्यक्ति दे रहे हैं। हिंदी में लिखी पुस्तकें भी पढ़ी और पसंद की जा रही हैं। अच्छा साहित्य कभी भी धूमिल नहीं होता। हिंदी साहित्य का वर्तमान बेहतर है तो भविष्य भी आशावान है।
लेखन के अतिरिक्त मुझे पेड़-पौधों से प्यार है लेकिन यह बात और है कि मैं अपनी इस शौक के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाता। पुराने हिन्दी गाने सुनना भी मुझे बेहद पसन्द है। मैं जब कोई रोमान्टिक कहानी लिख रहा होता हूँ तो पुराने हिन्दी रोमान्टिक गाने मेरे कमरे में गूंज रहे होते हैं।
इसके अतिरिक्त स्टेज पर नाटक निर्देशित करना भी मुझे एक प्रकार की संतुष्टि प्रदान करता है। अपने ऑफिस के वार्षिक समारोह में हर वर्ष मैं अपना लिखा एक नाटक अवश्य निर्देशित करता हूँ।
अपने लेखन के प्रति ईमानदार रहें और प्रसिद्धि पाने के लिए अपने लेखन और उसूलों से कभी भी समझौता न करें। आप दिल से लिखेंगे तो प्रसिद्धि और सफलता अपने आप ही पीछे-पीछे आएँगी।