जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
जगन्नाथदास 'रत्नाकर' का जन्म काशी के एक समृध्द वैश्य परिवार में हुआ। इनके रहन-सहन में राजसी ठाठ-बाट था । इन्हें हुक्का, इत्र, पान, घुडसवारी आदि का बडा शौक था । काशी से बी.ए. करने के पश्चात ये अयोध्या नरेश प्रतापसिंह के तथा उनके मरणोपरांत महारानीजी के निजी सचिव रहे । इन्हें प्राचीन संस्कृति, मध्यकालीन हिन्दी-काव्य, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, हिन्दी, आयुर्वेद, संगीत, ज्योतिष तथा दर्शन-शास्त्र की अच्छी जानकारी थी । इन्होंने प्रचुर साहित्य सेवा की । 'साहित्य-सुधा निधि और 'सरस्वती पत्रिका का तथा अनेक काव्य-ग्रंथों का संपादन किया तथा साहित्यिक एवं ऐतिहासिक लेख लिखे । इनकी मुख्य काव्य-कृतियाँ हैं- 'उध्दव-शतक', 'शृंगार-लहरी', 'गंगावतरण', 'वीराष्टक' तथा 'रत्नाष्टक' आदि। रत्नाकर कल्पनाशील, भावुक तथा काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ थे । इनमें आचार्य जैसी प्रतिभा थी। इनका 'उध्दव-शतक' सरसता, भाव की तन्मयता तथा उक्ति-वैचित्र्य में अद्वितीय है।
इनमें आचार्य जैसी प्रतिभा थी । इनका 'उध्दव-शतक' सरसता, भाव की तन्मयता तथा उक्ति-वैचित्र्य में अद्वितीय है।
परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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