इन्द्र जिमि जम्भ पर भूषण
इन्द्र जिमि जम्भ पर
भूषण | वीर रस | रीतिकालइन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।
पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,
तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥
भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग,
बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।
'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास,
नगन जडातीं ते वे नगन जडाती हैं॥
छूटत कमान और तीर गोली बानन के,
मुसकिल होति मुरचान की ओट मैं।
ताही समय सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो,
दावा बांधि परा हल्ला बीर भट जोट मैं॥
'भूषन' भनत तेरी हिम्मति कहां लौं कहौं
किम्मति इहां लगि है जाकी भट झोट मैं।
ताव दै दै मूंछन, कंगूरन पै पांव दै दै,
अरि मुख घाव दै-दै, कूदि परैं कोट मैं॥
बेद राखे बिदित, पुरान राखे सारयुत,
रामनाम राख्यो अति रसना सुघर मैं।
हिंदुन की चोटी, रोटी राखी हैं सिपाहिन की,
कांधे मैं जनेऊ राख्यो, माला राखी गर मैं॥
मीडि राखे मुगल, मरोडि राखे पातसाह,
बैरी पीसि राखे, बरदान राख्यो कर मैं।
राजन की हद्द राखी, तेग-बल सिवराज,
देव राखे देवल, स्वधर्म राख्यो घर मैं॥
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परिचय
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