फ़िर उठा तलवार रांगेय राघव
फ़िर उठा तलवार
रांगेय राघव | वीर रस | आधुनिक कालएक नंगा वृद्ध
जिसका नाम लेकर मुक्त होने को उठा मिल हिंद
कांपते थे सिंधु औ साम्राज्य
सिर झुकाते थे सितमगर त्रस्त
आज वह है बंद
मेरे देश हिन्दुस्तान
बर्बर आ रहा है जापान, जागो जिन्दगी की शान ।
अरे हिन्दी ! कौन कहता हा की तू है रुद्ध
कर न पाएगा भयंकर युद्ध
युद्ध ही है आज सत्ता, आज जीवन ।
देश,
संगठन कर ,जातियों की लहर मिलकर
तू भयानक सिंधु
राष्ट्र रक्षा के लिए जो धीर
फ़िर उठा ले आज
संस्कृति की पुरानी लाज से
भीगी हुई तलवार ।
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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