तारे चमके, तुम भी चमको गोपाल सिंह नेपाली

तारे चमके, तुम भी चमको

गोपाल सिंह नेपाली | शृंगार रस | आधुनिक काल

तारे चमके, तुम भी चमको, अब बीती रात न लौटेगी,
लौटी भी तो एक दिन फिर यह, हम दो के साथ न लौटेगी ।

जब तक नयनों में ज्योति जली, कुछ प्रीत चली कुछ रीत चली,
हो जाएँगे जब बंद नयन, नयनों की घात न लौटेगी ।

मन देकर भी तन दे बैठे, मरने तक जीवन दे बैठे,
होगा फिर जनम-मरण होगा, पर वह सौगात न लौटेगी ।

एक दिन को मिलने साजन से, बारात उठेगी आँगन से,
शहनाई फिर बज सकती है, पर यह बारात न लौटेगी ।

क्या पूरब है, क्या पश्चिम है, हम दोनों हैं और रिमझिम है,
बरसेगी फिर यह श्याम घटा, पर यह बरसात न लौटेगी ।

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