अब तो स्वरमय प्राण हमारे गुलाब खंडेलवाल

अब तो स्वरमय प्राण हमारे

गुलाब खंडेलवाल | शांत रस | आधुनिक काल

अब तो स्वरमय प्राण हमारे
इन गीतों की नगरी में हम कभी न होंगे न्यारे 

हमने शब्दयोग है साधा
जिसमें नहीं काल की बाधा
यहाँ श्याम के सँग है राधा
नित नव रूप सँवारे 
 
यह अंतर का भावलोक है
जहाँ न दुःख, भय, रोग, शोक है 
मिलन यहाँ कब सका रोक है 
मरण लाख सिर मारे 
 
जो भी इस पथ पर आयेगा
राग यही फिर-फिर गायेगा
स्वर बनकर जग में छायेगा 
जीवन जो हम हारे 

अब तो स्वरमय प्राण हमारे
इन गीतों की नगरी में हम कभी न होंगे न्यारे 

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