भिक्षा बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'

भिक्षा

बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' | शृंगार रस | आधुनिक काल

भर दो, प्रिय, भर दो अंतरतर,
विश्व-वेदना के कल जल से 
आप्लावित कर दो अभ्यंतर,
भर दो, प्रिय, भर दो अंतरतर।

छलका दो मेरी वाणी में 
अचर-सचर की विगलित करुणा
समवेदना-भावना से तुम कंपित 
कर दो यह हिय थर-थर,
भर दो, प्रिय, भर दो अंतरतर।

नभ-जल-थल से अनिल-अनल में 
करुण मोहिनी छवि दिखला दो,
पुलक-पुलक बह आने दो, प्रिय, 
मेरे नयनों का लघु निर्झर,
भर दो, प्रिय, भर दो अंतरतर।

इठलाते कुसुमों का मादक 
परिमल मन-नभ में फैला है,
अपनी निर्गुण गंध-किरण से 
चिर निर्धूम करो मम अंबर,
भर दो, प्रिय, भर दो अंतरतर।

मेरी मुग्धा व्यथा परिधिगत 
हुई - उसे नि:सीम बना दो,
मुक्त करो, प्रिय, मुक्त करो मम 
करुणा-वीणा के ये सुस्वर
भर दो, प्रिय, भर दो अंतरतर।

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com