क्या इनका कोई अर्थ नहीं धर्मवीर भारती

क्या इनका कोई अर्थ नहीं

धर्मवीर भारती | अद्भुत रस | आधुनिक काल

ये शामें, सब की शामें... 
जिनमें मैंने घबरा कर तुमको याद किया 
जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया 
जाने किस आने वाले की प्रत्याशा में 
ये शामें 
क्या इनका कोई अर्थ नहीं? 
वे लमहें 
वे सूनेपन के लमहें 
जब मैनें अपनी परछाई से बातें की 
दुख से वे सारी वीणाएं फेकीं 
जिनमें अब कोई भी स्वर न रहे 
वे लमहें 
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
वे घड़ियां, वे बेहद भारी-भारी घड़ियां
जब मुझको फिर एहसास हुआ
अर्पित होने के अतिरिक्त कोई राह नहीं 
जब मैंने झुककर फिर माथे से पंथ छुआ
फिर बीनी गत-पाग-नूपुर की मणियां
वे घड़ियां 
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
ये घड़ियां, ये शामें, ये लमहें 
जो मन पर कोहरे से जमे रहे 
निर्मित होने के क्रम में 
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
जाने क्यों कोई मुझसे कहता 
मन में कुछ ऐसा भी रहता 
जिसको छू लेने वाली हर पीड़ा 
जीवन में फिर जाती व्यर्थ नहीं
अर्पित है पूजा के फूलों-सा जिसका मन 
अनजाने दुख कर जाता उसका परिमार्जन 
अपने से बाहर की व्यापक सच्चाई को 
नत-मस्तक होकर वह कर लेता सहज ग्रहण 
वे सब बन जाते पूजा गीतों की कड़ियां 
यह पीड़ा, यह कुण्ठा, ये शामें, ये घड़ियां 
इनमें से क्या है 
जिनका कोई अर्थ नहीं!
कुछ भी तो व्यर्थ नहीं!

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com