उसके पहलू से लग के चलते हैं जॉन एलिया

उसके पहलू से लग के चलते हैं

जॉन एलिया | शृंगार रस | आधुनिक काल

उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

मै उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलतें हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं

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