रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है कुमार विश्वास

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है

कुमार विश्वास | अद्भुत रस | आधुनिक काल

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है
जीना मरना खोना पाना चलता रहता है

सुख दुख वाली चादर घटती वढती रहती है
मौला तेरा ताना वाना चलता रहता है

इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है
मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है

जिन नजरों ने काम दिलाया गजलें कहने का
आज तलक उनको नजराना चलता रहता है

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