श्रमिक रांगेय राघव
श्रमिक
रांगेय राघव | अद्भुत रस | आधुनिक कालवे लौट रहे
काले बादल
अंधियाले-से भारिल बादल
यमुना की लहरों में कुल-कुल
सुनते-से लौट चले बादल
'हम शस्य उगाने आए थे
छाया करते नीले-नीले
झुक झूम-झूम हम चूम उठे
पृथ्वी के गालों को गीले
'हम दूर सिंधु से घट भर-भर
विहगों के पर दुलराते-से
मलयांचल थिरका गरज-गरज
हम आए थे मदमाते से
'लो लौट चले हम खिसल रहे
नभ में पर्वत-से मूक विजन
मानव था देख रहा हमको
अरमानों के ले मृदुल सुमन
जीवन-जगती रस-प्लावित कर
हम अपना कर अभिलाष काम
इस भेद-भरे जग पर रोकर
अब लौट चले लो स्वयं धाम
तन्द्रिल-से, स्वप्निल-से बादल
यौवन के स्पन्दन-से चंचल
लो, लौट चले मा~म्सल बादल
अँधियाली टीसों-से बादल
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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