बरफ़ पड़ी है नागार्जुन
बरफ़ पड़ी है
नागार्जुन | अद्भुत रस | आधुनिक कालबरफ़ पड़ी है
सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है
सजे-सजाए बंगले होंगे
सौ दो सौ चाहे दो-एक हज़ार
बस मुठ्ठी-भर लोगों द्वारा यह नगण्य श्रंगार
देवदारूमय सहस्रबाहु चिर-तरूण हिमाचल कर सकता है क्यों कर अंगीकार
चहल-पहल का नाम नहीं है
बरफ़-बरफ़ है काम नहीं है
दप-दप उजली साँप सरीखी सरल और बंकिम भंगी में—
चली गईं हैं दूर-दूर तक
नीचे-ऊपर बहुत दूर तक
सूनी-सूनी सड़कें
मैं जिसमें ठहरा हूँ वह भी छोटा-सा बंगला है—
पिछवाड़े का कमरा जिसमें एक मात्र जंगला है
सुबह-सुबह ही
मैने इसको खोल लिया है
देख रहा हूँ बरफ़ पड़ रही कैसे
बरस रहे हैं आसमान से धुनी रूई के फाहे
या कि विमानों में भर-भर कर यक्ष और किन्नर बरसाते
कास-कुसुम अविराम
ढके जा रहे देवदार की हरियाली को अरे दूधिया झाग
ठिठुर रहीं उंगलियाँ मुझे तो याद आ रही आग
गरम-गरम ऊनी लिबास से लैस
देव देवियाँ देख रही होंगी अवश्य हिमपात
शीशामढ़ी खिड़कियों के नज़दीक बैठकर
सिमटे-सिकुड़े नौकर-चाकर चाय बनाते होंगे
ठंड कड़ी है
सर्वश्वेत पार्वती-प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है
बरफ़ पड़ी है
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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