गुलाब हम,गुलाब तुम कुँअर बेचैन

गुलाब हम,गुलाब तुम

कुँअर बेचैन | शांत रस | आधुनिक काल

भले हीं हममे, तुममे कुछ
ये रूप रंग का भेद हो
है खुशबुओं में फर्क क्या, गुलाब हम, गुलाब तुम

भले ही शब्द हो अलग, अलग-अलग हों पंक्तियाँ
अलग-अलग क्रियाएँ हों,अलग-अलग विभक्तियाँ
मगर हृदय से पूछिए, तो अर्थ सबका एक है
बता गयी है कान में, ये बात शब्द शक्तियाँ

भले हीं हममे, तुममे कुछ
कथन के ढंग का कुछ भेद हो
मगर सभी के प्यार की,किताब हम, किताब तुम !

उड़े भले अलग-अलग ये पंछियों की टोलियाँ
अलग-अलग हो रूप और अलग-अलग हो बोलियाँ
मगर उड़ान के लिये, खुला गगन तो एक है
भरी हुई है प्रीति से, सभी के मन की झोलियाँ

भले ही अपने सामने
नए-नए सवाल हों
मगर हरएक सवाल का जवाब हम, जवाब तुम
चलो की आज मिल के साथ राष्ट्र-वन्दना करें
सभी दिलों में एक रंग, सिर्फ प्यार का भरें
चलो कि आज मिल के हम, खाएं एक ये कसम
स्वदेश के लिये जियें ,स्वदेश के लिये मरें

तुम्हें कसम है ,
तुम भी एक पल न टूटना
कि देश के खुले नयन के ख्वाब हम हैं, ख्वाब तुम .

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