दूर जाकर न कोई बिसारा करे  गोपाल सिंह नेपाली

दूर जाकर न कोई बिसारा करे 

गोपाल सिंह नेपाली | शांत रस | आधुनिक काल

दूर जाकर न कोई बिसारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे,
यूँ बिछड़ कर न रतियाँ गुज़ारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

मन मिला तो जवानी रसम तोड़ दे, प्यार निभता न हो तो डगर छोड़ दे,
दर्द देकर न कोई बिसारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

खिल रही कलियाँ आप भी आइए, बोलिए या न बोले चले जाइए,
मुस्कुराकर न कोई किनारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

चाँद-सा हुस्न है तो गगन में बसे, फूल-सा रंग है तो चमन में हँसे,
चैन चोरी न कोई हमारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

हमें तकें न किसी की नयन खिड़कियाँ, तीर-तेवर सहें न सुनें झिड़कियाँ,
कनखियों से न कोई निहारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

लाख मुखड़े मिले और मेला लगा, रूप जिसका जँचा वो अकेला लगा,
रूप ऐसे न कोई सँवारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

रूप चाहे पहन नौलखा हार ले, अंग भर में सजा रेशमी तार ले,
फूल से लट न कोई सँवारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

पग महावर लगाकर नवेली रंगे, या कि मेंहदी रचाकर हथेली रंगे,
अंग भर में न मेंहदी उभारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

आप पर्दा करें तो किए जाइए, साथ अपनी बहारें लिए जाइए,
रोज़ घूँघट न कोई उतारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

एक दिन क्या मिले मन उड़ा ले गए, मुफ़्त में उम्र भर की जलन दे गए,
बात हमसे न कोई दुबारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।

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