लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है

यूनान, मिश्र ,रोमाँ सब मिट गए जहाँ से
बाकी मगर है फिर भी नामों-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जहाँ हमारा।।

भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्दोस्तान या इंडिया चाहे जिस नाम से भी इस भूखंड को सुशोभित किया जाए,एक मात्र सत्य जो ध्रुव तारे की तरह अडिग है वह है समय के चक्र पे इसकी गति निर्वाध रूप से आगे ही बढ़ती रही है। इतिहास साक्षी है कि सोने की चिड़िया कही जाने वाली इस भूमि के स्वामित्व की खातिर कभी मंगोल, कभी हूण , कभी अफ़ग़ान , कभी तुर्क तो कभी अंग्रेज़ों ने इस पार लगातार हमले किए,लेकिन अपनी विशाल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की बदौलत यह राष्ट्र आज भी स्वच्छंद,उन्मुक्त और प्रगतिशील है। वेदों और पुराणों की वाणी यही कहती है कि भारतीय संस्कृति सदैव ही दूसरी संस्कृतियों से अच्छाई अपनाती रही है और यही वजह भी है कि यह संस्कृति दिन दुगुनी और रात चौगुनी की दर से विकास करती जा रही है । स्वामी विवेकानंद ने कहा था - स्थूल नज़रों के पार भी अगर कोई देख सकता है तो वह है भारतीय संस्कृति। अगर भारतीय सभ्यता के बारे में यह कहा जाए कि लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है तो कोई भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
 

भारत की स्वाधीनता को कालकवलित करने की ब्रितानिया हुकूमत की नापाक कोशिशों को हमारे स्वाधीनता एवं सांस्कृतिक उत्थानों के अग्रगणी राजनायकों-राजाराम मोहन रॉय,गोपाल कृष्णा गोखले, महात्मा गाँधी ,सरदार वल्लभ भाई पटेल,सरोजिनी नायडू,एनी बेसेन्ट आदि ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और अद्वित्य साहस से नाकाम कर दिया।
 

माली से है अदावत सैय्यादे चमन हूँ मैं
सरकार का हूँ दुश्मन वफादारे वतन हूँ मैं
माली कभी ओहदे में चमन हो नहीं सकता
सरकार का मतलब तो वतन हो नहीं सकता
माली को बदलेंगे चमन फिर भी रहेगा
सरकार को बदलेंगे वतन फिर भी रहेगा।।

स्वाधीनता प्राप्त करने के तत्पश्चात ही डॉ भीमराव आंबेडकर के नेतृत्त्व में संविधान की रचना की गई जिसमें इस बात की पुष्टि की गई कि देश के हर नागरिक और समाज के हर वर्ग के इंसान को इस राष्ट्र पर सामान अधिकार होगा और उन्हें देश के प्रति दी गई जिम्मेदारियों का भी वाहन करना होगा। हमारे देश के पड़ोसी मुल्कों में कई जगह तानाशाही, सैन्य शासन और अराजकता है लेकिन भाईचारे की ज़िंदा मिशाल भारत आज भी दूसरे राष्ट्रों के लिए एक उदहारण बना हुआ है। भारत की "वसुधैव कुटुम्बकम","पंचशील" और " पड़ोसी प्रमुख " की चाणक्य नीति ही इसकी सम्प्रभुत्ता को अक्षुण्ण बनाए हुए हैं । आज देश के सामने भाषा,जाति ,धर्म,प्रादेशिक विसंगति के आधार पर कई मतभेद हैं जो देश के लिए नक्सलवाद,आतंकवाद, और दंगा -फसाद के रूप में समय समय पर उभर के सामने आते रहते हैं जो कि समाज में उपस्थित कुछ असामाजिक तत्वों की कारस्तानी होती है। पर हर सरकार की यही कोशिश होती है कि देश में अमन और चैन का माहौल कभी खराब न हो। इसके लिए हर सरकार युवाओं को रोज़गार , बूढ़ों,बच्चों और महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा ,किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य,बेघरों को घर एवं हर नागरिक को मूलभूत सुविधाएँ पहुँचाने के किए हमेशा प्रतिबद्ध है।
 

पाकिस्तान और चीन के द्वारा भारत की आज़ादी को नुकशान पहुँचाने की कई चेष्टा की गई ताकि इसके विकास का रथ रोका जा सके परन्तु आज विश्व का हर राष्ट्र भारत की शान्तिप्रिय कूटनीति का समर्थक है। मार्टिन लूथर किंग, आंग सांग सू की ,दलाई लामा ,नेल्सन मंडेला और रोलैंड रोमां जैसे प्रख्यात विश्व के नेताओं ने भारत की अमनपसन्दी से बहुत कुछ सीखा है।
 

गुजराती कवि नरसिंह मेहता के शब्दों में जो कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के मूलवाक्य थे-

वैष्णव जन तो तेने कहिए जे
पीड़ पराई जाने रे
पर दुखे उपकार करे ते
मन अभिमान न माने  रे।

एवं "सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामयः ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,माँ कश्चित् दुखभाग भवेत् " की सूक्ति को नीव मान कर आगे बढ़ने वाला यह राष्ट्र कई पतझड़ों से होकर गुजरा पर कभी भी इसका उपवन इनसे उजड़ नहीं पाया। हालांकि इस राष्ट्र ने अपने कई वीरों की आहुति भी दी लेकिन कभी भी किसी और राष्ट्र की तरह बुरी निगाहों से नहीं देखा।

जो बीत गई सो बात गई
माना वो बेहद प्यारा था
जीवन में एक सितारा था
देखो इस अम्बर को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे 
पर बोलो  टूटे तारों पर
कब अम्बर शोर मचाता है।

आज जब पूरा विश्व आर्थिक मंदी से जूझ रहा है तो वहीँ भारत अपनी सुदृढ़ वित्तीय संस्थाओं की बदौलत 9 फीसद की बढ़ोतरी कर रहा है। भारत की सेना आज विश्व की सबसे बेहतरीन सेनाओं में मानी जाती है और इसका प्रमाण है कि अमेरिका,जापान,चीन, फ़्रांस जैसे राष्ट्र हर साल सांझा सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। इसरो ने अपनी सार्थकता साबित करके एवं काम लागतों वाले उपग्रह छोड़कर न सिर्फ अपने देश बल्कि कई अन्य देशों की समस्याएँ भी सुलझाई है। ग्लोबल सोलर अलिअन्स की नीव रख कर एक बार फिर भारत ने विश्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित की है। राष्ट्र समूह में सबसे ज्यादा शान्ति सैन्य समूह में भारत की भागीदारी है। आज पूरे विश्व में भारत के चिकित्सक,इंजिनियर और व्यवसाई वर्ग वहाँ की दिशा और दशा दोनों तय कर रहे हैं.
 

चुनौतियां तमाम हैं लेकिन आज भारत के पास सबसे बड़ी युवा जनसँख्या जो की 15 -49 साल के बीच की है, का इस्तेमाल करके यह राष्ट्र फिर से एक बार विश्व गुरु बन सकता है। अमेरिकी कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट के शब्दों में जिसे डॉ हरिवंश राय बच्चन ने अनुवादित किया है के साथ मैं भारत के सुखद भविष्य की कामना करता हूँ और कहता हूँ कि चाहे कितने भी पतझड़ आ जाए यह सनातन उपवन कभी नहीं उजड़ेगा:-

सघन,गहन,मनमोहक तरूवन तक मुझको आज बुलाते हैं 
किन्तु किए जो वायदे मैंने वो याद मुझे आ जाते हैं
अभी कहाँ आराम बदा यह मूक निमंत्रण छलना है
अभी मुझको रूकने से पहले मीलों-मीलों चलना है।

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