लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है
हर व्यक्ति के कई तरह के सपने होते हैं, जिसको पुरा करने के लिए वह हर तरह की कोशिश करते हैं । पर यदि कोशिश में असफल होते है तो हताश होकर छिपछिप कर रोते हैं । सोचने लगते हैं कि हमारे द्वारा कोई कार्य नहीं हो पायेगा । पर रोने से कोई लाभ नहीं होता । यदि सपना पुरा नहीं होता है तो कोई बात नहीं ।हमें हार नहीं माननी चाहिए और प्रयत्न करते रहना चाहिए । कभी न कभी वो सपना जरुर पूरा होना ।
हर महान व्यक्ति के पीछे उसका संघर्ष छिपा होता है ।कोई जन्म से ही महान नहीं बन जाता । न जाने कितने संघर्ष और परिश्रम के बाद उसे सफलता मिलती है । मात्र एक असफलता से हमें हार मान कर नहीं बैठना चाहिए।विश्व के दिग्ग्ज बल्लेबाज और भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को भी अपने शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष करना पड़ा । जब वह 12 साल के थे तब उन्हें अंडर-15 मैच खेलने के लिए दादर स्टेशन से शिवाजी पार्क तक दो किट बैगों के साथ पैदल जाना पड़ा था क्योंकि उस समय उनकी जेब में टैक्सी के लिए पैसे नहीं थे।
एक और कहानी है एक क्रिकेटर और श्री लन्का के पूर्व कप्तान मर्वन अटापट्टू के संघर्ष की । अटापट्टू ने अपने पहले टेस्ट मैच की पहली इनिंग्स में एक भी रन नहीं बनाया । दूसरी इनिंग्स में भी वो डक पर आउट हो गए । श्री लंका के सेलेक्टर्स ने उन्हें अगले मैच के लिए नहीं चुना । अटापट्टू टीम से निकाल दिये गये । दिन-रात प्रैक्टिस और कड़ी मेहनत के फल स्वरूप उन्होंने घरेलू मैचों में शानदार प्रदर्शन दिया जिसके कारण इक्कीस महीने यानी पौने दो सालों के बाद उन्हें दोबारा टीम में चुना गया । पर इस बार भी उनका परफॉरमेंस अच्छा नहीं रहा । पहली इनिंग्स में ज़ीरो और अगली इनिंग्स में 1 रन । फिर से उन्हें टीम से निकाल दिया गया । पर उन्होंने आस नहीं छोड़ी और संघर्ष करते रहे । सत्रह महीनों बाद उन्हें फिर से बुलाया गया । उनके फर्स्ट क्लास में बनाये स्कोर की बदौलत । दोनों इनिंग्स में फिर से बैटिंग मिली और एक बार फिर दोनों इनिंग्स में स्कोर ज़ीरो । अटापट्टू का कैरियर ख़त्म माना जा रहा था । दुनिया के सबसे बड़े लेवल पर वो बारम्बार असफल हो रहे थे ; जबकि फर्स्ट क्लास मैचों में शानदार प्रदर्शन कर रहे थे । कहा जा रहा था कि उनमें वो बात नहीं है जो बड़े लेवल पर उन्हें स्टार प्लेयर बना सके । लेकिन अटापट्टू को ये मालूम था कि बुरा वक़्त सिर्फ कुछ वक़्त को ही रहता है । अच्छे वक़्त को आना ही पड़ता है । शर्त बस ये है कि आप अपने काम को करते रहें हार न मानें । अटापट्टू ने वही किया । पसीना बहाते हुए । देह को आराम न देने की कसम उठाते हुए । तीन साल बाद उन्हें फिर से टीम में वापस बुलाया गया ।इस बार खूब रन बनें । वहां से शुरू हुई अटापट्टू की अटापट्टू बनने की कहानी ।वो कहानी जिसकी वजह से हम सब आज उन्हें जानते हैं । 5000 के ऊपर टेस्ट रन. अपने देश की टीम के कप्तान और रिटायर होने के बाद श्री लंका के कोच भी रहें । 6 साल में अपने कैरियर का दूसरा रन बनाने वाले अटापट्टू “Don’t give up” की नसीहत को सचमुच चरितार्थ करते हैं.
महान वैज्ञानिक, शानदार शिक्षक और बेमिसाल शख्सियत के तौर पर अमर हो चुके पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न दिवंगत डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन भी कम संघर्षपूर्ण नहीं रहा । बचपन से ही उनका जीवन कई तरह के संघर्षों से गुजरा। रामेश्वरम की गलियों में अखबार बेचने से लेकर देश के राष्ट्रपति बनने तक उन्होंने संघर्ष, समर्पण और अनुशासन की अद्भुत पटकथा लिखी। उनके वैज्ञानिक जीवन की उपलब्धियों ने भारत को दुनियाभर में अलग पहचान दिलाई। हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संघर्ष की मिसाल है । वडनगर गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्मे थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी । एक चाय बेचने वाला कभी देश का पीएम भी बनेगा ये किसी ने सोचा नहीं था । पर निरंतर संघर्ष और कठिन परिश्रम के बल पर आज वह हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं ।
गोपालदास नीरज जी हिंदी के साहित्यकार शिक्षक कवि सम्मेलनों के मंच पर काव्य वाचक एवं फिल्म के गीतकार लेखक थे उनकी लिखी कविता जीवन नहीं मरा करता की पत्तियां लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता क्या खूब जिंदगी जीने के तरीके को सिखाती है कुछ कार्य और आशाएं पूरी ना हो तो भी जीवन नष्ट नहीं होता प्रकृति परिवर्तन निरंतर परिवर्तनशील है जो पुराना हो गया है उसे फेंक देती है और नया रूप धारण करती है यह जानते हुए हमें दुख की स्थिति में घबराना नहीं चाहिए तथा दूसरों को हानि नहीं पहुंचा नहीं चाहिए । जब पतझर का मौसम आता है तो चारों तरफ वृक्षों के पत्ते झर जाते हैं उपवन अपनी सुंदरता को देता है किंतु कूपन इससे निराश नहीं होता बाहर आने पर फिर वही उपवन नए-नए पत्तों और फूलों से सुसज्जित हो जाता है इसी तरह हमें भी एक कसक असफलता पर निराश नहीं होना चाहिए और प्रयत्न करते रहना चाहिए
जिन्दगी में छोटी बड़ी मायूसी तो आती जाती रहती हैं । उन्हें कितने दिनों कोई अपने ऊपर हावी होने देता रहे । नीरज की ये कविता उन लोगों पर एक तीखा कटाक्ष है जो सपनों के टूटने और किसी के जुदा होने का मातम इस तरह मनाते हैं जैसे उसके अलावा उनकी जिन्दगी के कोई मायने ही ना हों । ये कविता हमें प्रेरित करती है कि हम गम के अंधेरों से बाहर निकले और इस कठोर यथार्थ को समझे कि संगी साथी, सपने सब छूट जायें भी तो ये जीवन चलता रहता है ; बिना रुके बिना थमें । तो क्यूँ ना हम बिखरे हुये तिनकों को जोड़ें और चल पड़ें जीवन रुपी पर्व का हर्षोल्लास से स्वागत करने । सफलता पाने का प्रयास छोड़ा नहीं जा सकता । कहा भी जाता है - सफलता कभी निश्चित नहीं होती और असफलता कभी अंतिम नहीं होती। हम जीवन की किसी एक घटना को केन्द्र मानकर नहीं जी सकते क्योंकि जीवन आगे बढ़ने के लिए है रूक जाने के लिए नहीं है । हमेशा सकारात्मक रहिए , असफलता को स्वीकार कीजिए और उससे सबक लेकर नए उत्साह के साथ आगे बढ़िये- यही जीवन है । लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता !