लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है
उपवन में खिले फूल, हरे पत्ते, मंडराते भंवरें , चारों ओर फैली सुगंध, जीवन में आने वाली खुशियों का प्रतीक है। हर कोई चाहता है, उसका यह जीवन रूपी बगीचा यूं ही महकता रहे, यूं ही रंग बिरंगी एवं हरा भरा रहे। उसमें दुख रूपी पतझर का कभी पदार्पण ना हो। पर यह संभव नहीं है। कभी न कभी उपवन में पतझर का आगमन तो होना ही है, पतझर में पत्तों की गिरने से पेड़- पौधे सुने उदास एवं कुरूप नजर आते हैं, परंतु यह पतझर हर किसी को जड़ से उखाड़ने की हिम्मत नहीं करता वह केवल उनके पत्तों को झड़ा सकता है क्योंकि जड़ से मजबूत अर्थात हौसलों से मजबूत अर्थात जिसका मनोबल ऊँचा हो उसे आंधी तूफान भी नहीं हिला सकते , अपनी जड़ों की पकड़ मजबूत कर वह खड़े रहता है।
पतझर का मतलब पेड़ का अंत नहीं : आपके साथ कुछ बुरा होता है तो आप उदास महसूस करते हैं, कई लोग निराशा का शिकार हो जाते हैं। कई लोग आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। लेकिन, सोचिए पतझर के समय जब पेड़ में एक भी पत्ती नहीं बचती है तो क्या उस पेड़ का अंत हो जाता है? नहीं। वो पेड़ हार नहीं मानता, नए जीवन और बहार की आस में खड़ा रहता है। और जल्द ही उसमे नयी पत्तियाँ आनी शुरू हो जाती है, उसके जीवन मे फिर से बहार आ जाती है। यही प्रकृति का नियम है। विश्वास रखना चाहिए कि नयी जिन्दगी पुरानी से कहीं बेहतर होगी।
मनुष्य की स्थिति भी ऐसी ही है, अगर वह इन छोटे -छोटे पतझर से डर कर बैठ जाएगा तो जीवन में आने वाले बड़े- बड़े दुखों का सामना करने में असमर्थ होगा।
किसी ने सच कहा है-" मन के हारे हार है मन के जीते जीत" और पतझर का सामना केवल पेड़- पौधों को ही नहीं बल्कि सभी प्राणियों को करना पड़ता है। हरिवंश राय बच्चन जी ने कहा है, यह जीवन अग्निपथ है और इस पर चलते हुए हर क्षण संकट, बाधाएं, विपत्तियों का सामना करना पड़ेगा। अग्निपथ पर चल रहे पथिक को एक पत्ते जितनी भी छाया की कामना नहीं करनी चाहिए, उसे बिना मुड़े, बिना थके चलते जाना है। संकल्पी एवं दृढ़ निश्चयी बनना है। तब कोई भी पतझर किसी भीउपवन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। तभी हम कह सकते हैं लाख करे कोशिश पतझर पर उपवन नहीं मर सकता। कबीरदास जी कहते हैं कि-
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घडा, ऋतू आए फल होय।
अर्थात धीरज ही जीवन का आधार है, जीवन के हर दौर में धीरज का होना जरूरी है फिर चाहे वह विद्यार्थी जीवन हो, वैवाहिक जीवन हो या व्यापारिक जीवन। कबीरदास जी ने कहा है कि अगर कोई माली किसी पौधे को 100 घड़े पानी भी डाले तो वह एक दिन में बड़ा नहीं होता और न ही बिन मौसम फल देता है। हर बात का एक निश्चित समय होता है जिसको प्राप्त करने के लिए
व्यक्ति में धीरज होना बहुत जरूरी है।
इसी प्रकार संकट रुपी पतझर से उबरने के लिए भी धीरज तथा आशावादी दृष्टिकोण होना आवश्यक है। आशाएं जीवन का शुभ लक्षण हैं। इनके सहारे मनुष्य विपत्तियों में दुश्चिन्ताओं को हँसते-हँसते जीत लेता है। जो केवल दुनिया का रोना रोते रहते हैं उन्हें अर्द्धमृत ही समझना चाहिये, किंतु आशावान् व्यक्ति परिश्रम के लिये सदैव समुद्यत रहता है। वह अपने हाथ में फावड़ा लेकर कूद पड़ता है खेतों में, और मिट्टी से सोना पैदा कर लेता है। आशावान् व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करता है। वह औरों के आगे अपना हाथ नहीं बढ़ाता बल्कि औरों को जीवन देता है। उचित यही है कि आज हमारी जैसी परिस्थितियाँ हैं उनमें सन्तोष अनुभव करें और आगे के लिये उनसे अच्छे परिणामों की आशा करें, तभी हम जीवन में कोई महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं। एक-सी परिस्थिति में पड़े रहना अकर्मण्य पुरुषों को शोभा दे सकता है। किन्तु आपकी शान इसी में है कि आप हर घड़ी, सुन्दर भविष्य की आशा करें। जैसे उपवन नये पत्तों की अशा करता है। आज जिस पद पर आप हैं, कल उससे बड़ा दर्जा मिले ऐसी आशा करें और अभी से उनके लिये प्रयत्न शुरू कर दें। सच्चे व्यक्ति का यह प्रथम लक्षण है कि वह उज्ज्वल भविष्य के लिये हर क्षण आशावान् बना रहे। तभी हम कह सकते हैं लाख करे कोशिश पतझर पर उपवन नहीं मर सकता। बरगद का वृक्ष अकाल में भी हरा भरा रहता है , इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। इसकी अन्दरूनी मजबूती ही इसके विशालता एवं अडिगता का कारण है। पतझर इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता । नीम, देवदार, पीलू, कपूर, नीम्बू और चीकू ये सदाबहार पेड़ के कुछ उदहारण हैं।पतझर इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता अतः हम कह सकते हैं पतझर किसी भी उपवन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। तभी हम कह सकते हैं लाख करे कोशिश पतझर, पर उपवन नहीं मर सकता