बेटी
बजी है थाल घर में आज कि घर में आई है बेटी,
पिता की गोद में आकर सहज मुस्काई है बेटी !
जरा सा चलना सीखा है, जरा तुतलाई है बेटी,
सितारे अपने दामन में सभी भर लायी है बेटी !
वो बेटी है, वो बहिन है, हाँ सखा है वो साथी भी,
मगर कोई नही कहता कभी पराई है बेटी !
अचानक सब बदलता है,बड़ी अब हो गई बेटी,
कि जैसे खुले हाथो की हथकड़ी अब हो गई बेटी !
हजारो बंदिशो के बाद भी प्रश्नों के घेरे में,
दामन के सितारे ज्यो कि ओझल हो सवेरे में !
वो भी कुछ नही कहती, कहा सब मान लेती है,
जो दुनिया जां छिड़कती थी, वो दुनिया जान लेती है !
कि जैसे गुजरे वक़्त की कहानी हो गई बेटी,
खिलोने तक नही टूटे, सयानी हो गई बेटी !!