संवेदनशील मन
देख-देख हरण-चीरहरण,
धिक् दुर्जन, कर्त्तव्य धिक्कारता,
सुनता है रुदन, भावाभिव्यक्ति जटिल,
सुन मानव, कोई मदद को पुकारता,
एक कोरा कागज,
पड़ी थी जिन पर,
चार पानी की बूँदें,
सजल-नयन-युग्म के मोती थे वो,
स्वेद भी टपक रहा,
नखों के निशान है,
कौन इंसान, कौन हैवान है??
नारी-चरित्र हैरान है,
अथक-कम्पित हाथों ने जिन्हें पाला,
जब उनका विष-दंश पीठ लगा,
सूखा नमकीन झरना बहाया मन ने,
चीख-चीखकर खामोश रुदन हुआ,
अवहेलना है डर कैसा,
तवे पर पानी के छमछम जैसा,
संवेदनशील मन रचता, रचना कमाल,
बगल में आग लगी, ज़रा होश संभाल,
रूह की रूहानी भाषा,
सुनने वाले बहरों का तमाशा,
द्वेष ही क्लेश है,
दर्प-शून्य महेश है,
अभिमान की लपट जली,
विध्वंस ही लंकेश है,
हाँ नारी!! तुम देवी हो,
सबकी कल्पना से भिन्न,
तकदीर बदलती, हर पीर सहती,
मैं तुम्हें थोडासा समझता,
तुम अनन्त सी बहती,
हाँ नारी!! तुम देवी हो,
देख-देख हरण-चीरहरण,
धिक् दुर्जन, कर्त्तव्य धिक्कारता……..