नदिया सा बहना सीखो
चुप रह कर सब सहना सीखो, सागर जैसा रहना सीखो ,
रुक कर तो रोते हैं नाले, तुम नदिया सा बहना सीखो |
सूरज जो तपना रुक जाता, कैसे जीवन में सुख आता,
रुक जाते गर नभचर सारे, फिर क्यों इठलाते ये तारे |
क्यों खिलता शीतल चाँद कहीं, क्यों होती पीतल सांझ कही,
जो रुक जाता निर्मल झरना, तो व्यर्थ ही था यू श्रम करना |
जो रुक जाता पीनेवाला, तो व्यर्थ खुली थी मधुशाला,
गर ज्ञात उन्हें था सारा रण, तो व्यर्थ लडे थे सौम्य कर्ण |
जीतों पर तुम इथलाओ, हारों पर यूँ मत झुक जाओ|
रोकी जाए जो राह अगर, तुम उड़ जाओ बनकर नभचर|
जो रोका जाए रथ तेरा , तो समझ लो निकट ही है सवेरा|
पास ही कही विजय श्री खड़ी है, समीप कही अथ श्री खड़ी है |
बैठो मत चलते जाओ, अपना गढ़ा आसमान बनाओ|
हारिल सा तुम उड़ना सीखो, गीतों सा तुम घुलना सीखो,
रुक कर तो रोते हैं नाले, तुम नदिया सा बहना सीखो |