उड़ता पंछी

ये सौंधी सी हवा एक विश्वास भरती है मन में,
लगता है अब बस एक ही सितारा चमकेगा जग में,
ये हिलते हुए पत्ते लगते हैं ऊर्जा लिए कण कण में,
पुकारे, कहे मुझसे छा जा इस नील गगन में।
 

ये बहती नदी, चलती है तोड़ती हुई रोड़ें अपनी राह में,
कहे मुझसे चलता जा मुसाफिर अभी समय है लक्ष्य से मिलन में,
कण-कण इस संसार में झूम-झूमकर गाए , मुस्कुराए अपनी ही धुन में,
देकर मुझे अपनी सारी ऊर्जा, कर जाए एक पंछी जो उड़ता जाए निर्मुक्त पवन में।

 

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