बिसात
चलते हुए कब्र की ओर जा रहे है,
बाकायदा लोग खुद को मुर्दा बता रहे है |
खो गये थे उजालो में जो कही ,
वो साए भी अब नजर आरहे है |
बिसात क्या मेरी एक अदना सा प्यादा,
वजीर और राजे भी यहाँ सर झुका रहे है |
शामिल थे कल पैरोकारो में मेरे,
आज पीठ पे खंजर चला रहे है |
कैसे कहू जो जिन्दा है उन्हें बक्शो ,
यहाँ तो मुर्दे ही मुर्दों को खा रहे है |