कैसी आज़ादी ?

देश तो आज़ाद हो गया
पर हम उस आज़ाद देश के गुलाम।
बााँटते हैं इंसानियत का पैगाम
पर करते हैं भ्रष्टों को सलाम
आखिर हम जो आज़ाद देश के गुलाम।
 

आज़ाद तो हम भी हैं -
मगर डैने फैला नहीं सकते
सर तो उठा सकते हैं
पर खुलकर गा नहीं सकते।
सफलता से पहले हो जाते हैं नाकाम
आखिर हम जो ठहरे आज़ाद देश के गुलाम।
 

रिश्वत, भ्रष्ट, आतंक, बलात्कार ;
कुशासन की चक्की में पिसती जनता लगातार।
खुली नभ के नीचे दुष्कमों को देख,
क्यों लेते हैं अपनी नज़रें झेंप।
क्या यही है हमारी आज़ादी ?
भू पर पग रखा नही की सजा दी।
धन संपत्ति, घर-मकान ;
हो जाते हैं नीलम
आखिर हम जो ठहरे आज़ाद देश के गुलाम।
 

मुठ्ठी भर दाना न पाना,
जीवन भर के किस्से सुनाना
दर-दर भटके लाचार फिरे
दावानल को बुझाने, बीबी-बच्चे भी ;
घर-घर नाचे और द्वार फिर ।
भूख मिटी नहीं कि हया को बचाने,
खुद दौड़े कृष्ण को मनाने।
यहाँ कोई कृष्ण नहीं ,सब कौरव ही मिला
जब अपने ही खुद काम न आये,
करे औरों से क्या गिला ?
कर दिया अपनों ने ही जीना हाराम
आख़िर हम जो ठहरे आज़ाद देश के गुलाम।
 

आज़ादी का मकसद ये नहीं
कि हम ही पंजों से वार करें
बाहर-बाहर ईमान दिखाकर
अंदर से इसका व्यापार करें।
सिर्फ अनुकरण करना आज़ादी का मकसद नहीं जन,
चाहिए आज़ादी नहीं तो दिखेगा हमारा पागलपन।
अब हम परम्परों को भी न स्वीकार करेंगे
रोकेगा जो हमें उसके भी सीने पर वार करेंगे।
 

आओ मिलकर आवाहन करें,
अपनी शक्ति की पहचान करें
भविष्य में नहीं अपितु इसी क्षण
हो जाये तैयार अब करना है रण।
देखें कोई,जयचंद और मीरज़ाफर बच न सके
दुश्मन सरहद पर डट न सके।
करें हर-हर महादेव का जय-जयकार
मचा देंगे महा प्रलय का हम चित्कार।
 

आओ टूटी नमज़रावे को जोड़ने चलें हम,
हो देशभक्त, नई सुर-तान छेड़ने चलें हम
हो सके जिससे सशक्त भारत का नवनिर्माण
निखरे जिससे सोने की चिड़िया की नई पहचान।
भगत,बोस ,आज़ाद के मंत्र को तंत्र मिले
कायरों का टूटता हुआ षड़यंत्र मिले
हर कोई स्वतंत्र मिले
भारत को नया गणतंत्र मिले।
 

सिर्फ जनतंत्र कहलाना आज़ादी का मकसद नहीं
आतंक लूट -खसोट दररंदों की जहाँ दस्तक नहीं!
जात-पात ऊँच-नीच, भेद-भाव की जहाँ दहशत नहीं
धर्म की आड़ में छिपकर जहाँ भगदड़ नहीं
खुले गगन काली रातों में जहाँ विषधर नहीं !
तारे भी जहाँ टिमटिमा सके, आली भी जहाँ खुल के गा सके
उपवन का हर फूल जहाँ लहलहा सके !
निशाचर भौरों आतंकी दरिंदों को जब हम सुला सकें
शायद, तब हम आज़ाद कहला सकें !

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