हम मुसाफिर तुम मुसाफिर

हम मुसाफिर तुम मुसाफिर एक ही थी रेलगाड़ी
कुछ अलग था गर वहाँ तो मंजिलें केवल हमारी
  

रेलगाडी में मुसाफिर बाँटते अखबार जैसे
हर ख़ुशी गम की खबर हम बाँटते थे ठीक वैसे
सीट अपनी एक ही थी इसलिए तो साथ थे हम
हम ना होते गर वहाँ तो दूसरी होती सवारी
  

हम मुसाफिर तुम मुसाफिर एक ही थी रेलगाड़ी
  

वो सुहाने दृश्य देखे साथ हमने खिडकियों
थे मुसाफिर तो बहुत ही तुम अलग थे बाकियों से
चाहिए था कुछ ना तुमसे पर मुझे अच्छा लगा था
संग रहना बस तुम्हारे बात करना ढेर सारी
 

हम मुसाफिर तुम मुसाफिर एक ही थी रेलगाड़ी
  

यूँ उतरकर ट्रेन से है कौन किसको याद करता
ट्रेन हैं सब जिंदगी की फिर हृदय क्यों आह भरता
मोह करते हैं सभी क्यों राह के इन साथियों से
जानते हिं एक दिन तो छोडनी हर रेलगाड़ी
  

हम मुसाफिर तुम मुसाफिर एक ही थी रेलगाड़ी
  

सच कहूँ हर वक्त मुझको है न कोई याद आता
किन्तु खाली जब हुआ दिल है किसी को गुनगुनाता
सिद्ध सोचा आज कल में भूल जाऊँगा तुझे भी
पर हवाओं में दिखाई दे रही है छवि तुम्हारी
  

हम मुसाफिर तुम मुसाफिर एक ही थी रेलगाड़ी
  

कुछ अलग था गर वहाँ तो मंजिलें केवल हमारी ......

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