अगर आप होते तो

मेरे स्वर्गीय पिता,
अगर आज आप होते तो दिखाता,
घर का वो चौड़ा अहाता, जो अब आपके बिना सुना हैं ...........
 

माँ का चेहरा जो झुर्रियों से भरा हैं,
भाइयों के कंधे जिम्मेदारी से झुके हैं,
और मेरी आँखे,
जो नम हो जाती हैं अक्सर,
आपकी यादों मैं बिलखकर |
पर शायद मैं आपको अब याद नहीं हूँ आता,
अगर आप होते तो दिखाता,
घर का वो चौड़ा अहाता, जो आपके बिना सुना हैं ………….
 

यूँही मौसम बदल जाते हैं,
पतझर –सावन, बसंत - बहार,
मैं बेतरतीब सा चला जाता हूँ,
ना जाने क्या सोचते हर बार,
क्यों नहीं रोक देता समय ये विधाता,
पूछना आप अगर वो हो बतलाता,
अगर आप होते तो दिखाता,
घर का वो चौड़ा अहाता, जो अब आपके बिना सुना हैं .........
 

माँ अब भी सड़को पे देखती हैं,
शायद आपके इंतज़ार में,
एक बार आप ही आ जाते,
या कोई हाल चाल ही बतलाता,
अगर आप होते तो दिखाता,
घर का वो चौड़ा अहाता, जो अब आपके बिना सुना हैं .........
 

अब वो कंधे नहीं रहे,
अब वो गोद भी कहाँ,
जहा छुप के मैं,
खुद को बहलाता फुसलाता,
अगर आप होते तो दिखलाता
घर का वो चौड़ा अहाता, जो अब आपके बिना सुना हैं ……….
 

आपकी समाधि पर मैंने,
एक तुलसी पौधा लगाया था,
आपको छाया देगा वो,
यह सोच मन को समझाया था
काश ! ये सब आपको बतलाता,
अगर आप होते तो दिखाता
घर का वो चौड़ा अहाता, जो अब आपके बिना सुना हैं .............

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