धर्म क्या कहता है
धर्म कहाँ कहता है कि
मत्तेतर होने की स्तिथि में
अन्य धर्मों की अधोगति की जाए
अन्य धर्मामलम्बियों की आस्था को
क्रोध की अग्नि में तिलांजलि दी जाए
धर्म कहाँ कहता है कि
एक राष्ट्र एक ही धर्म का अनुगामी हो
जो हो परित्यक्त इस विचार का वो दूरगामी हो
केवल धर्म की आड़ लेकर
निर्दोष बच्चे,बूढों की हत्या कहाँ तक न्यायोचित्त है
जो हैं इस विश्वास के आदी वो धर्म की व्याख्या से वंचित हैं
धर्म कहाँ कहता है कि
भूखे पेटों में मूर्तियाँ बसा दी जाएँ
फटेहालों के वस्त्र भी मज़ार पे चढ़ा दी जाएँ
कुछ रुपयों की खातिर आदिवासियों का धर्मांतरण कर दिया जाए
या फिर धर्म के नाम पर घृणा का ज़हर दिया जाए
धर्म कहाँ कहता है कि
एक धर्म ही अन्य धर्मों से बेहतर है
जो है अन्य धर्म के वो इंसान कमतर है
जिनकी भृकुटियाँ नहीं तन जाती धार्मिक उन्मादों पर
वो नीच,बेशर्म,अपराधी और कातर हैं
धर्म कहाँ कहता है कि
धर्म की विवेचना मात्र एक तरीके से हो
जो हो पसन्द ठेकेदारों को उसी सरीके से हो
धर्म गोचर,अगोचर,स्थूल,चलायमान सब है
धर्म की प्रासांगिकता धर्म को जी के हो
धर्म कहाँ कहता है कि
मेरे निवास के लिए सब विस्थापित कर दिए जाएँ
अंधभक्ति में मज़लूमों को व्यथित कर दिया जाए
जो हैं मान-मर्यादित, उनको कलुषित कर दिया जाए
जिनकी नहीं धर्म में आस्था,वो शोषित कर दिए जाएँ
आखिर धर्म का धर्म क्या है
इनसे जुड़ी भावना का मर्म क्या है
धर्म जीता है अनुनय,विनय और आग्रह में
धर्म बड़ा होता है मानवीय मूल्यों के सत्याग्रह में
धर्म सिंचित होता है बाह्याडम्बरों के विग्रह में
और धर्म हार जाता है हठियों के दुराग्रह में
बुद्ध,महावीर,नानक,कबीर सबकी एक ही विचारधारा
शांति,सुख,प्रेम और भाईचारा का हो उजियारा