एहसासों की मधुशाला

मधु के मद मे झूम रहा है,
बिन जिह्वा पर रख हाला,
तुझको पढकर चूम रहा है,
जीवन को मरनेवाला।
 

तुझको गले लगाउंगा जब,
पीड़ा देगी मृदुबाला,
सबको गीत सुनाउंगा तब,
बनकर मै साक़ीबाला।
 

नृत्य करूंगा तेरे तट पर,
नीर मे हो ग़र सुख प्याला,
अपना सर्वस्व वारूं तुझपर,
बनकर तेरी मधुशाला।
 

तू भी मुझको वचन दे ऐसा,
हर लेगी सबका छाला,
अंजुमन मुझको दे ऐसा,
रहे न जिसमे तम काला।
 

ज्वार कभी उर प्रांत में हो,
इठलाता है दृग का प्याला,
अनल अगर मन बन उठता हो,
ठंडक देती प्रिय हाला।
 

ये शर्मीली है तब तक,
रहती है जब तक प्यालों में,
छुअन अधर का जैसे होता,
करती नृत्य ख्यालों में।
 

कभी उर्वशी बन जाती है,
स्वप्न पुरुरवा का पाकर,
या पूर्णिमा सी बन जाती है,
अधर शुक्ल पक्ष का पाकर।
 

बंटा ना तेरा दामन जग में,
बांट ना पाया कोई घूंट,
थक कर सो गए चिर निद्रा में,
डाल रहे जो इसमे फूट।

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