सुनो द्रौपदी
सुनो द्रौपदी
जिस सभा में
तुम्हारी अस्मिता लूट ली गई
तुम
दुःशासन के द्वारा जूठी की गई
स्त्रियों के लिए वो महाभारत
आज भी जारी है
कल तुम्हारी बारी थी
आज किसी और की बारी है
कृष्ण हो गए अन्तर्धान
काल ने छीन लिए योद्धाओं के प्राण
आज फिर से वही विपदा छाई है
एक बार फिर से
तुम्हार मर्यादा पर अँधियारी गहराई है
मैं कहता हूँ
क्यों तुम करो इंतज़ार
किसी कृष्ण का
किसी भीष्म का
या
किसी का भी
तुम छीन लाओ
कृष्ण का सुदर्शन चक्र
परशुराम का फरसा
कर्ण का कवच
अर्जुन की गांडीव
दुर्वासा का क्रोध
और
भष्म कर दो
खुद ही बनकर
चंडी, दुर्गा और कपालिनी
याद रखो
जब तक
पराश्रित रहोगी
कोई न कोई
शोषण कर जाएगा
तुम तो शायद
बच जाओ
तुम्हारी बेटी बहनों को
डस जाएगा।।