प्रेम ही केवल एक मात्र कारण है
तुम्हारे चेहरे से टकराकर
जो धूप छिटककर
मेरे दरवाजे तक आ पहुँची है
तुम्हारी सोंधी खुशबू
और
तुम्हारे शफ्फाक हुश्न का तेवर लिए
और
जिसको अख्तियार है
मेरे घर में टिक जाने की
सूरज की मानिंद
साँझ के दिए में सिमट जाने की
और
जिसको इंतज़ार है
मेरे घर में
करीने से रखी हुई
तुम्हारे हर एक याद को
थपकियाँ देकर जगाने की
पलकों पे जमी
अलसाई नींद को भगाने की
और
जो मौजूद होना चाहती है
हर एक उस पल में
जब मैंने तुम्हें
पहली बार देखा था
इसी तरह धूप से छनते हुए
तुम्हारे नूरानी चेहरे को
जिनमें किसी अप्सरा की तासीर थी
रंभा,मेनका,उर्वशी की जागीर थी
जिसमें खज़ाना छिपा था
मिश्र के पिरामिड का
जिसमें वैभव था
मदुरै की मीनाक्षी मंदिर की
जिसमें आभा थी
दमयंती की दृढ़ता की
और
जो पवित्र थी
गंगा की तरह कई जन्मों से
वो धूप
जब भी
तुमसे गुज़र कर
मुझ तक आती है
तो
मुझे एहसास होता है
प्यार आज भी
एक पवित्र अहसास है
कोई दाग नहीं
जीवन जीने का ढंग है
मृत्यु का राग नहीं
प्रेम व्याप्त है
सृष्टि की हर कल्पना में
प्रेम ही आधार है
नव नूतन परिकल्पना में
और
प्रेम ही केवल एक मात्र कारण है
तुम्हारे और मेरे होने में।।