अमर सपूत
वो अब अमर सपूत नहीं
वो "भगत" नहीं,
वों "सुखदेव" नहीं
गर वों "आज़ाद" नहीं
तो तुम आजाद नहीं
जिनको आता था मर-मिट जाना
वों "बिस्मिल्ल" नहीं,
वों "राज" नहीं
जों कुंदे थे अखण्ड भंवर कुण्ड में,
अब वों "दत्त" नहीं,
वों "अशफाक" नहीं
दिल मेरा भी रोता है "उपमन्यु",
सुन इन चमचो (नेता) कि वाणी
कहते हो तुम आतंकवादी उनको
सुखा लिया जिसने नम आँखों का पानी
क़र्ज़ कैसे उतरोगे तुम उनका,
तर्पण कर दी जिसने पूरी जवानी
वों माँ भारती के लाल,
अमर सपूत है
नहीं करते जों वंदन उनका,
वों सभी दुष्ट कपूत है