नारी पृथ्वी भूमिका
अतुल्य है ये धुरी, जिस पर धरा का भार है,
नारी के आस्तित्व का ये स्पष्ट ही आधार है!
पृथ्वी रूपी नारी, ये दोनों एक समान हैं,
प्रेम से जो पालती वो मां बहुत महान है!
तू ही जन्मदाता मेरी, तू ही अन्नदाता है,
तुझसे है जीवन मेरा, तू मेरी पहचान है!
नमन् करता हूँ तुझे, मुझ पर तेरा आभार है,
अतुल्य है ये धुरी, जिस पर धरा का भार है!!
माँ बहन और बेटी, सब रिश्तों की लाज़ है,
नारी शक्ति की सशक्त बुलन्द आवाज़ है!
हिम्मत क्या बदकार की मन में जो ठान ले,
तोड़दे सीमायें सब क्या रीति क्या रिवाज़ है!
दोष क्या इसमें तेरा, समय की ये पुकार है,
अतुल्य है ये धुरी जिस पर धरा का भार है!!
चाक है संसार सब, मैं माटी तुम कुम्हार,
चाहे जैसे ढाल दो, तुम ही हो पालनहार!
तुमने ही पैद़ा किया देकर अपना रंग रूप,
कौन है जग में दूजा जो दे भर पेट आहार!
जननी जानती है सब क्या अबोध की गुहार है,
अतुल्य है ये धुरी जिस पर धरा का भार है!!
अपना कद़ नींचा रख, करती उपकार है,
देनें की प्रवर्ति है कुछ लेने से इन्कार है!
सबको सब कुछ देकर भी जो परिपूर्ण है,
ऐसी महान नारी को मेरा भी नमस्कार है!
सहने की क्षमता, ये पृथ्वी का आकार है,
अतुल्य है ये धुरी जिस पर धुरा का भार है!!