
मेरी अंजली
सब्जी खरीदकर जैसे ही मै पलटा कि सामने से आती हुई उस काया को देखकर सोच में पड़ गया ,त्यौरिया चढ़ाकर उस आती हुई माहिला को पहचानने की कोशिश करने लगा मै ,थोडा और करीब आने पर मुझे पता चला ये तो अंजली थी ,मेरी अंजली, ये वो अंजली थी जिसे मै कभी प्यार करता था जिसे कभी मै भूल नही पाया ,वो अंजली जिसे दूर से देखते ही मै पहचान लेता था फिर आज क्या हुआ, शायद वक्त की ली हुई करवट का नतीजा था कि आज मै अपनी अंजली को पहचान नही पा रहा था ,कितने सालो बाद आज अंजली को देख रहा था ,अपने पति के साथ सब्जी लेने आई थी ,चुपचाप ख़ामोशी के साथ चल रही थी , जिस चेहरे की खूबसूरती के लाखो दीवाने हुआ करते थे उस चेहरे पर अब झुर्रिया पड़ गयी थी ,जो लड़की कभी चंचल हुआ करती थी बिलकुल पहाड़ो से निकली नदी की तरह वो आज बहुत शांत सी दिख रही थी ,ऐसा लग रहा था जिंदगी के मैदानी भाग तक आते आते उसकी चंचलता शांत हो गयी हो ,अंजली मेरे करीब आ चुकी थी उसने पलके उठाके मुझे देखा थोड़ी देर निहारती रही मुझे, होठ खामोश थे उसके, आँखे भर आई थी उसकी ,वक्त मानो ठहर सा गया था ,नम आँखे लिए वो आगे बढ़ गयी अपने पति के साथ, बिना मुझसे कुछ बोले हुए शायद उसे मेरा लिया हुआ वो वादा याद आ गया था जो मैंने उससे लिया था जब उसने मुझसे कहा था हम कभी एक नही हो सकते | कितना दुखी हुआ था मै अंजली के इन अल्फाजो को सुनके ,सब्जी का थैला लेकर मै सड़क पर धीरे धीरे चलने लगा, सारी पुरानी बाते याद आने लगी | कैसे हम एक रिश्तेदार की शादी में मिले गोलगप्पे वाले स्टाल पर ,मै गोलगप्पे खाने जा ही रहा था कि चटकारे की आवाज सुनके उस तरफ देखने लगा जिधर से ये आवाज आ रही थी ,एक सजी धजी लड़की चटकारे ले ले कर गोलगप्पे खा रही थी और मै गोलगप्पे खाना छोड़ उसे देखने लगा था, उसकी सुन्दरता का आकलन करने लगा था,पीली सरवार सूट में कितनी खूबसूरत लग रही थी ,कानो में पहने हुए नग पर जब प्रकाश पड़ता तो इन्द्रधनुष की तरह कई रंगों वाली छाया उसके गालो पर पड़ने लगती और उसकी सुन्दरता में चार चाँद लग जाते ,उसे देखने के बाद मेरे मन में कितनी तीव्र इच्छा हुई उससे बात करने की और बात करने के चक्कर में वो जिस जिस स्टाल पर कुछ खाने के लिए जा रही थी मै भी उसके पीछे पीछे जाने लगा था| उसका अपनी सहेलियों के साथ बार बार पीछे मुड़कर देख हसना मुझे इस बात का एहसास करा चुका था कि उसे पता चल चुका है मै उसका हर स्टाल पर पीछा कर रहा हूँ | मै तुरंत वहा से खिसक कर अपनी चचेरी बहन से उसके बारे में जानकारी लेने लगा था | चचेरी बहन ने बहन का रिश्ता निभाते हुए कितनी आसानी से अंजली से मेरा परिचय करवा दिया ,अंजली के पास ले जाकर मुझसे बोली भैया ये अंजली दीदी है रोहन भैया के दोस्त की बहन और दीदी ये मेरे बड़े भैया है इलाहाबाद से आये है रोहन भैया की शादी में |इलाहाबाद में कहा रहते हो आप अंजली ने आश्चर्य से पूछा जी बालसन चौराहे के पास इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमएससी कर रहा हूँ अच्छा और मै बीए फाइनल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ही अंजली से मुस्कुराते हुए कहा ,अच्छा आप भी इलाहाबाद में ही रहती हो मन ही मन खुश होते हुए मैंने अंजली से पूछा और उसने बाकायदा अपना पता दे दिया माहिला छात्रावास में बैंक रोड के पास |अच्छा आप मेरा हर स्टाल पर पीछा क्यों कर रहे थे अंजली से मुझसे पूछा और मैंने शरमाते हुए जवाब दिया आप मुझे अच्छी लगी मै आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ | बस दोस्ती या कुछ और अंजली ने छेड़ते हुए मुझसे पूछा मैंने भी शालीनता से जवाब दिया हर रिश्ते की नीव दोस्ती ही होती है, मेरे इस लाइन पर तो अंजली जैसे मुझपर फ़िदा ही हो गयी ,शादी में दोनों ने बहुत सारे खूबसूरत पल साथ में बिताये | चलते वक्त दोनों लोगो ने एक दूसरे का फोन नंबर लिया और इस तरह हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई| फोन से होने वाली बाते अब मुलाकातों में बदल गयी, इलाहाबाद में हम लोग कितना मिलते, साथ में घूमते,बतियाते, दोनों को प्यार का एहसास भी हो गया था . ऐसा लगने लगा , हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने है कि तभी एक दिन अंजली ने कह दिया तुम मुझे भूल जाओ मेरी शादी कही और तय हो गयी है मै घर वालो की मर्जी के खिलाफ नही जा सकती ,मुझे तुमसे प्यार है और हमेशा रहेगा पर मेरा प्यार अपने मम्मी पापा से भी उतना ही है हम दोनों एक नही हो सकते | ये कहना न तो अंजली के लिए आसान था और न ही मेरे लिए सुन पाना आसान था | दोनों अपने आसुओ को एक दूसरे से छुपाने की कोशिश कर रहे थे ताकि कमजोर न दिखे एक दूसरे के सामने | मैंने किस तरह अंजली से वादा लिया कि शायद किस्मत को हमारा मिलना मंजूर नही पर एक वादा करो जिंदगी में कभी तुम मुझसे मिलना मत अगर मुझे देखना तो अनजान बन जाना ,किसी अजनबी की तरह नजरे फेर लेना ताकि तुम्हे देखकर मै फिर से तुम्हारे बारे में सोचना न शुरू कर दू | फिर से तुम्हारी यादो में डूबकर मै जिन्दगी जीना भूल न जाऊ , आज इतने सालो बाद अंजली मिली पर मेरा लिया हुआ वादा नही भूली थी, मेरा घर आ चुका था, मैंने अपना दरवाजा खोला घर के अन्दर आया और गजल लगा दिया ताकि मेरी तनहाई में कोई तो साथ दे मेरा आखिर मेरा इन तन्हाईयो के सिवा कोई था भी तो नही ,अंजली के आलावा किसी और के बारे में भला मै कैसे सोच सकता था इसीलिए तो शादी भी नही की थी आज तक ,गुलाम अली साहब की गजल बजने लगी थी चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है और मै आँखे बंद करके गजल की उन पंक्तियों को जीने की कोशिश करने लगा था |