
स्वच्छ भारत
“यही तो इस देश की सबसे बड़ी विडंबना है| योजनाओं के लिए आवंटित धन राशि बेहिसाब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है|” साइड पे लगी फोल्डेबल मेज़ पर ज़ोर से हाथ मारते हुए चाचाजी बोले|
“निसंदेह भ्रष्टाचार बहुत बड़ी समस्या है, पर क्या इस देश की बिगड़ती हालत का ज़िम्मेदार केवल इसे ही माना जाये| हमारे देश की कुल जनसंख्या सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा है पर सरकारी नौकर इस आबादी का कुल दस प्रतिशत भी नहीं हैं| इस देश की बिगड़ती हालत के ज़िम्मेदार तो इस देश के नागरिक भी हैं, जो भ्रष्टाचार हो या किसी भी सरकार का कुशासन हो, हर मुसीबत के सामने सर जुका कर सह लेते हैं|”
पिताजी की यह बात सुनकर मुझे भी उनकी बात में वज़न लगा| मैं भी इस विषय में सोचने लगा तो बगल में बैठे विन्नी ने मेरी पुस्तक छीन कर मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की| रेल गाडी की थड थड की आवाज़ में बड़ों की बातें सुनने में मुझे वैसे ही परेशानी हो रही थी, उस पर विन्नी के इस अशिष्ट व्यव्हार पर मुझे बहुत गुस्सा आया| मैंने उससे शिष्टाचार सिखाने हेतु बल प्रयोग करने का सोचा, पर माँ ने मेरी तरफ घूर के देखा और मैं रुक गया| माँ का आशीर्वाद अपनी शैतानियों में पाकर विन्नी हसने लगा| उसकी खिलखिलाहट भरी हंसी सुन के मेरा भी मन बदल गया, और उससे अपनी पुस्तक देते हुए मैंने अपना ध्यान पूर्णतः पिताजी की ओर लगाया|
“इस देश में लोगों को जब भी किसी चीज़ में बुराई लगती है तो सारा ठीकरा सरकार पर फोड़ कर हम लोग खुद को अपनी जिम्मेदारियों से मुख्त कर देते हैं|”
“भैया आपका बस चले तो आप सारे दोषियों को बरी कर संसार की सारी बुराईयों का ज़िम्मेदार ख़ुद को ही घोषित कर दें|”
“अरे भाई बात ज़िम्मेदारी लेने या देने की नहीं है| हमारे समाज का एक दिक्कत तो यही है कि हम अपना पूरा समय जिम्मेदारियां और दोष दूसरों पर डालने में लगे रहते हैं| इससे आगे तो हम कभी बढते ही नहीं| गलती किसी की भी हो , क्या समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करना सब का धर्म नहीं है| जिस दिन हम यह बात समझ जायेंगे उस दिन इस देश का वास्तविक रूप में विकास सम्भव होगा|
“अगर ऐसी ही बात है तो भैया ज़रा बताइए के स्वच्छ भारत अभियान शुरू किये सरकार को एक साल से ज्यादा हो चुका है, फिर भी यह स्टेशन व रेल पटरियों पर इतनी गंदगी का कुछ क्यों नहीं हुआ? हजारों करोड़ रूपए इसके लिए देश भर में बाटें जातें हैं, पर स्वच्छता के नाम पर केवल नेता और बाबु लोग झाड़ू लेकर साफ़ सुथरी जगाओं को फिर साफ़ करते हैं ताकि उनकी तस्वीर भी देश का कचरा साफ़ करते हुए खींची जाएँ| वास्तविकता तो यह है के लोग कभी स्वच्छता, तो कभी किसी और अभियान की आड़ में देश की तिजोरियों से जनता का पैसा साफ़ कर रहे हैं|”
“अच्छा एक बात बताओ, तुमने पटरियों पर पढ़ी गंदगी और स्टेशन की झरझर हालत को देखा, पर क्या तुमने इस विषय में कुछ किया? तुम भी तो केवल दोष ही दे रहे हो”|
“हाँ तो भैया मैं इन पटरियों और स्टेशन के रख रखाव के लिए पैसे व टैक्स तो भरता ही हूँ| साफ़ स्टेशन व पटरियां मेरा अधिकार है, तो जो लोग मुझसे मेरा अधिकार छीनते है ,मैं क्यों ना उन्हें दोष दूँ? आपको गाँधीवादी बनना है तो आप बनिए,मुझे चुप चाप बैठने को क्यों कहते हैं|मैं तो क्रांति में विश्वास करता हूँ| इस देश का उपचार करना है तो इस देश को भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों से मुक्त कराना होगा|”
“प्रिय अनुज, गांधीवाद का मूक होकर अत्याचार सहना नहीं है| विरोध करो, आवाज़ उठाओ पर सही तरह से| अपनी क्रांति को विनाश की दिशा ना दो| समाज को बदलने वाली क्रांति का आधार सकारात्मक होना चाहिए, तभी देश व समाज का निर्माण संभव है|मैं तुम्हें पटरियों पे उतर कर सफाई करने को नहीं बोल रहा पर तुम आतिरिक्त कचरा ना फैलाओ| खुद सफाई रखो और हो सके तो दूसरों को भी शिक्षित करो|”
“कचरा ना फ़ैलाने की बात पर तो मैं आप से पूर्णतः सहमत हूँ पर किसी और को मैं क्यों कहूँ? उनकी खुद की समझ कहाँ हैं? क्या यह देश उनका नहीं हैं? और वैसे भी अगर वह लोग गवार हैं तो सरकार उन्हें शिक्षित करे, किसी और के पचडे में पड़कर मैं पंगा क्यों लूँ?”
यह सुनते ही पिताजी ज़ोर से हस पड़े| मैं और चाचाजी उनकी तरफ देखने लगे| फिर चाचाजी ने एक क्षण भर के लिए मेरी तरफ देखा और थोडा गंभीर होकर पिताजी से बोले, “आप हंस क्यों रहे हैं भैया| मैंने कोई चुटकुला सुनाया क्या या फ़िर मैंने कोई उपहासजनक बात कही?”
पिताजी हंसी रोक कर बोले, “प्रिय अनुज, मैं तुम्हारा उपहास नहीं कर रहा पर यह पंगा लेने की बात पर मैं खुद को रोक नहीं सका| एक ओर तो तुम समाज को बदलने के लिए क्रांति की बातें करते हो और वहीँ किसी अनजान व्यक्ति को अपनी गलती समझाने मे संकोच करते हो| अगर तुम किसी व्यक्ति को उसके अवगुण व कमियों से अवगत कराने से डरोगे तो फिर उस व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों का पता कैसे चलेगा?”
“परंतु भैया, यह मेरा काम तो नहीं हैं फ़िर मैं क्यों करूँ?”
“अच्छा भाई यह बताओ के तुमने गांधीजी की कहानी सुनी ही होगी के अगर कोई तुम्हें बाएँ गा्ल पे थप्पड़ मारे तो तुम दाईना गाल आगे कर दो|”
“और क्या मतलब है इसका, किसी अत्याचारी को जवाब ना दो वरना वह हिंसा होगी|”
“अरे नहीं मेरे भाई| गांधीजी की शिक्षा आपको कमज़ोर बनाने की नहीं हैं| तुमने इस सीख को कायरता का अमलीजामा पेहन के देखा है| दरअसल, इस नसीयत मैं छुपा ज्ञान तो यह है के हिंसा कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति कर सकता है| मगर अहिंसा के पथ पर चलने के लिए सुद्रिड निश्चय की आवशकता हैं| हिंसा का रास्ता ना अपनाकर तुम खुद को कमज़ोर साबित नहीं कर रहे, परंतु तुम अपने विरोधी को बता रहे हो कि तुम उनके स्तर तक नहीं गिरोगे| बल्कि तुम उससे अपनी गलती से अवगत कराते हो|”
“यह तो कहने की बात है भैया| अच्छा बताये, इसका हमारे स्वच्छता वाली समस्या से क्या लेना देना?”
“लेना देना है भाई| अगर तुम्हे अपनी शिक्षा व संस्कारों पे भरोसा है और देश की फिकर है तो तुम सुद्रिड सोच के हुए| सशक्त सोच वाले लोग ही तो किसी और को सही रास्ता दिखाते हैं| अगर तुम्हारे खुद के चरित्र मैं कमियाँ हैं तो तुम दूसरों को क्या दिशा दोगे, क्रांति कैसे लाओगे| अच्छा काम केवल करना नहीं हैं,दूसरों को भी शिक्षित व प्रोत्साहित करना है के वो भी देशहित में हर कदम उठाएं, कूड़ा-करकट ना फैलाने से लेकर भ्रष्टाचार रोकने तक|”
तभी कहीं अचानक से विन्नी भी चिल्लाया, “मेले स्कूल में भी गुरूजी ने कहा के हमे शफाई लखनी चाहिए औल घर पल भी सभ को बताना चाहिए ताकि जल्दी से जल्दी हम अपने देश को साफ़ सुथरा बना सकें|”
“बिलकुल बेटा| गुरूजी की बात को सदा याद रखना और सही काम करने व सच बोलने से कभी डरना मत|”
पिताजी से शाभाशी पाकर विन्नी ख़ुशी से उछालने लगा और मुझे चिढाने लगा| मैंने भी हस कर उसके सर पर हाथ फेरा तो उसकी आखें चौंधिया गई|
“ऐसी बात| मैं पूर्णतः गांधीजी के विचारों से सेहमत तो नहीं हूँ, परंतु इस बात पे तो मैं भी उनके विचारों का पूरी तरह समर्थन करूँगा| गांधीजी व प्रधान मंत्रीजी के स्वच्छ भारत के सपने में मै अपना पूरा योगदान दंगा अथवा अन्य व्यक्तियों को भी प्रोत्साहित करूँगा |”