
अद्भुत छात्रावास जीवन
उज्जवल के गाँव में पढ़ाई का माहौल नहीं था | विद्यालय भी नहीं था | पड़ोस के बच्चे पढ़नेवाले नहीं थे | उज्जवल भी उनकी संगति में बिगड़ रहा था | दिन भर उनके साथ घूम करता|माँ उसकी हरकतों से परेशान थी|उसके पिता ने उसे छात्रावास भेजने का फैसला किया | उज्जवल उस समय तीसरी कक्षा में था | पिता ने शिक्षक से बात कर ली थी | उज्जवल को लेकर उसके पापा छात्रावास गए |छात्रावास का प्रधान उसके पापा का दोस्त था | दो दिन तक उज्ज्वक के साथ रहने के बाद उसके पापा वह से चले आये | उज्जवल को यह जगह बहुत अलग लग रहा था | उसे अपने माता-पिता के याद आ रही थी |वह बहुत रो रहा था |उसके मन वह बिलकुल भी नहीं लग रहा था | हालाँकि शिक्षक उसके पूरा ध्यान रख रहे थे | शुरू में वहाँ का खाना भी नहीं खाता था | शिक्षक उसे बहुत प्यार से खाना खिलाते| इतने छोटी उम्र इतना कष्ट, उज्जवल के लिए यह सहना बहुत मुश्किल था | उसे हर पल घर, माँ की याद आती थी| माँ को भी उसकी बहुत याद आती थी|छात्रावास जीवन का यह पल बेहद कष्टमय था |माँ कभी-कभी उससे मिलने आती थी|जब माँ को वह देखता बहुत रोने लगता|बड़ी मुश्किल से उसे नियंत्रित किया जाता|घर की अपेक्षा वह यहाँ पढता अवश्य था|शिक्षक भी वहीं रहते थे |वे बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह समझ पाते |उनके विकास में योगदान देते|सोने के लिए चौकी , साधारण बिस्तर और औसत दर्जे का खाना था | कभी रोकर, कभी माँ को याद कर , कभी पापा को याद कर ,काफी कष्टो से गुजरा यह पहला वर्ष | सुबह पाँच बजे बच्चो को उठाया जाता, छह बजे वयायाम, स्नान, भोजन, उसके बाद पढ़ाई शुरू हो जाती थी |चार बजे मैदान में खेल होता था | बच्चों को सामाजिक ज्ञान और अन्य व्यावहारिक ज्ञान भी सिखाया जाता|साथ-साथ पढने, खेलने से वह के बच्चों के साथ उज्जवल की दोस्ती हो गयी |धयान रहे की यही से अनुशासन, दिनचर्या -पालन, स्वनिर्भरता का पौधा पनप रहा थी | इस तरफ वहा वर्ग पाँचवाँ में आ गया और जवाहर नवोदय विद्यालय के प्रवेश परीक्षा पास की और वर्ग षष्ठ में नवोदय विद्यालय में पढने लगा | वह का माहौल बेहद अद्भुत था | पहले वर्ष षष्टम में काफी परेशानी हुई | पर अब चतुर्मुखी विकास के उदय के शुरुआत हुई | छात्रावास में पेड़ - पौधे लगाना, सफाई- अभियान शुरू हुआ | वहाँ सुबह पाँच बजे उठना था, साढ़े पाँच बजे से व्यायाम शुरू होता था | सात बजे प्रभात सभा होती थी | प्राचार्य संबोधन, प्रार्थना , विभिन्न कार्यक्रम होते थी | चार बजे मैदान में खेलने के लिए, और छह बजे सांयकालीन सभा होती थी |फिर छात्रावास में आकर पढना होता था |पढ़ाई आठ बजे तक होती थी| आठ बजे सदनाध्यक्ष उपस्थिति देखते थे |सदनाध्यक्ष बच्चों पर खाश ध्यान देते| सदननायक और अन्य सदस्यों का चुनाव होता|सदन में सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता होती थी|बच्चों का समूह बनता |सदन में गान-प्रतियोगिता होती थी| खेल -प्रतियोगिता होती थी |विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रम में भाग लेने के लिए छात्रों को सिखाया जाता था |
समय गुजरता चला गया ,दोस्त बनते चले गए |उज्जवल खेलने के लिए कई दूसरे नवोदय विद्यालय में गया|वह के छात्रावास व्यस्था देखी|वह वर्ग षष्ठ में अपने सदन का सदनायक भी बना|सदन में अपने सहपाठियो से मिलजुलकर रहा |उसने सदन में वर्ग षष्ठ के बच्चो का मार्गदर्शन किया,सिखलाया|अपने सदन के विकास में योगदान दिया |सफाई -प्रतियोगिता हुई| उज्जवल ने बच्चो को समूह में बाँट दिया|दस सदन थे|बहुत कड़ा मुकाबला था |प्राचार्य द्वारा सदन के नाम से कप मिलना था|उज्जवल के साथ सदन के अन्य बच्चो ने अद्भुत योगदान दिया|अंत में जब सदन को कप मिला,बेहद यादगार था वह क्षण|क्रिकेट में विद्यालय के सदनों मे प्रतियोगिता थी|सदनाध्यक्ष ने उज्जवल के अगुआई में अपने सदन को को उतारा|सुबह -शाम अभ्यास होता|सदनाध्यक्ष ,उज्जवल खिलाडी को प्रेरित करते|अद्भुत अभ्यास हुआ|उज्जवल के साथ दल ने गजब प्रदर्शन किया और सदन को जीत मिली|अद्भुत था वो पल|उज्जवल ने मंच पर प्रदर्शन इससे पहले नहीं किया था | वह शर्मीला था |जब पहली बार वर्ग षष्ठं में जब मंच पर समाचार पथ करना था|मंच पर जाकर बोलने में वह ललड़खड़ा गया |अष्ठम के छात्रों से काफी फटकार मिली |छात्रों ने मजाक उड़ाया|दूसरी बार उसे कविता -पाठ में गलती हुई|इस बार भी उसका मजाक उडा|उज्ज्वलने हार नहीं मानी|वर्ग अष्ठम में हिंदी,वर्ग -शिक्षिका ने उसका साथ दिया|उसे कविता लिखना सिखाया|सदन में अभ्यास करने को कहा|वर्ग में उससेबहुत बार कविता पाठ करवाया|सदन -कविता प्रतियोगिता हुई| |उज्जवल ने कविता लिखी |सदन में बहुत बार अभ्यास किया|बहुत जोरदार मुकाबला था|उसके सदन की आस उज्जवल पर टीकी थी|सदनाध्यक्ष ने हौसला बढ़ाया ,वर्ग -शिक्षिका ने मार्गदर्शन किया,मंच पर वह गया, मजबूत हौसलों के साथ अद्भुत प्रदर्शन किया|बेहद यादगार पल था,उसके सदन कोपहली बार काव्य-पाठ में पहला पुरष्कार मिला था| एक बार दूसरे विद्यालय में एकछात्र ने आत्महत्या कर लीऔर एक छात्र छात्रावास से भाग गया था|सदनाध्यक्ष ने उज्जवल और अन्यसाथीयों को बुलाया |इन सब बातों से अवगत कराया |उन्होंने सदन में एक दल बनाया|यह दल बच्चों का हौसला बढ़ाता|सब तरह से वर्ग षष्ठ के छात्रों की मदद करता|पढ़ने में कमजोर छात्रों की मदद करता |सभी लोग मिल जुल कर छोटों का ध्यान रखते|सदन में बहुत शांति था |सदनाध्यक्ष ने एक ऐसा दल बनाया जो छात्रों पर ध्यान रखे और यदि कोई छात्र दबाव में हो ,कोई परेसानी हो तो तुरंत उन्हें बताये| एक छात्र को सुरु में मन नहीं लग रहा था | वह बहुत अकेला रहता|वह एक दिन विद्यालय के छात्रावास से भागने की सोच रहा था|उज्जवल ने उसके दोस्त से यह जाना|उसे बहुत समझाया|सर से उज्जवल ने बात की ,उन्होंने छात्र को आप[ने पुत्र के सामान बड़े प्यार से समझाया|छात्र को घर जाने का मन था|उन्होंने उसके पिता से बात की |उसे तीन दिन का छुट्टी दिया|उज्जवल ने सारे छात्रों को ऐसे बातो को बताने के लिए कह दिया था |एक छात्र परीक्षा में चोरी करते पकड़ा गया था |वह षष्ठं का छात्र था |उसे बहुत डांट पड़ी |वह बहुत तनाव में आ गया था|बहुत रो रहा था|उस विषय में कुछ लिख नहीं पाया था |दस मिनट बाद ही उसे निकाल दिया गया था|दूसरे विद्यालय में एक छात्र इस हालात में बहुत फटकार सेआत्महत्या कर चूका था|छात्रावास में आने के बाद वह बहुत रो रहा था|बहुत तनाव में था|उज्जवल को एक छात्र ने बताया|वह तुरंत छात्रावास में गया| देखा वह बहुत रो रहा था|"मुझे बचा लो ,मेरे लिए यह असहनीय है" |उज्जवल ने उसे बहुत समझाया|दूसरे छात्रों की देख -रेख में उसे छोड़,सदनाध्यक्ष को बताया|वे तुरंत छात्रावास पहुंचे|उन्होंने अपने पुत्र के सामान उसे बहुत समझाया|उज्जवल को उस पर ध्यान देने को कहा|उज्जवल उसे पढ़ाई में मदद करने लगा |उन्होंने शिक्षक से बात की|सात दिन बाद उस छात्र को वह परीक्षा फिर से देनी थी|उज्जवल ने उसकी बहुत मदद की,सहस बंधाया|पढाई में बहुत मदद की|उसने परीक्षा में लाजवाब प्रदर्शन किया|उज्जवल ने उसे खुद पर विश्वाश रखने और मेहनत करने की प्रेरणा दी|उस छात्र ने कभी ऐसा काम नहीं करने का वायदा किया|यह सामाजिक कार्य था| इन कोशिशो से छात्रों का भविष्य बर्बाद होने से बच रहा था|
पिता के सामान उज्जवल अपने सदनाध्यक्ष का आदर करता था|वे बच्चो को अपने पुत्र के सामान मानते थे |अद्भुत मेल बढ़ रहा था| वे बेहद अनुभवी थे | बच्चो के तनाव कम करने का सदा कोशिश करते|गुरु -सम्मान ,गुरु-प्रेम अद्भुत अनुभव मिला|उज्जवल बीमार बच्चो की बहुत मदद करता था|एक बार उज्जवल औरवर्ग षष्टम का छात्र बीमार था|वह छात्र जब बिस्तर पर से उतर तो उसके पांव में कांच गड गया|वैसे तो उसकी तबीयत बहुत खराब थी पर फिर भी उसने उस छात्र को उठाकर तुरंत नर्स के पास ले गया|श्याम के पांव में घाव हो गया था|उज्जवल ने उसकी बहुत मदद की|बीमारों की मदद करना ,छोटे बच्चो को छोटे भाई के सामान मानना,कई सामाजिक गुण सीखे|भेदभाव का अवगुण ख़तम हो चूका था|सहयोग की भावना बढ़ी | वर्ग अष्ठम में फिटजी की प्रवेश परीक्षा पास कर वह वर्ग नवम में फिटजी छात्रावास में रहने लगा | वहाँ पढ़ाई का अद्भुत माहौल था|छात्रावास मेंरहने से उसे बहुत मदद मिली|साथ पढ़ने से पढ़ाई में मन लगता था,पढ़ाई का दबाव कम पड़ता था|वे लोग एक दूसरे की मदद करते ,दर्द बांटते |वह सबसे मिलजुलकर रहता,सदा खुश रहता| सरस्वतीपूजा समारोह , परीक्षा से पहले आकर शिक्षको का आकर बच्चो को प्रोत्साहित करना , छात्रों की विभिन्न समस्यायों का समाधान करना अद्भुत था | सरस्वती पूजा समारोह बेहद अद्भुत होता था |छात्रावास को सजाया जाता|अद्भुत भक्ति माहौल बन जाता |सुविधाएँ काफी अच्छी थी | इस तरह बारहवीं परीक्षा पास कर वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की प्रवेश परीक्षा पास कर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पढने चला गया | वहा छात्रावास में रहा | छत्रावास बहुत बड़ा था | वहाँ का अनुशाशन बहुत कड़ा था | वहाँ काफी सुविधा थी | वहाँ का छात्रावास जीवन बहुत अद्भुत था | वहाँ पूर्ण अनुशाशन में रह कर अद्भुत पढ़ाई की | वहाँ सबसे मिलजुलकर रहा | दूसरो की हमेशा मदद करता , दूसरों का दर्द बाँटता | शुरू से सही छात्रावास जीवन बिताने से जो अनुभव मिला था ,उस से यहाँ काफी मदद मिली |दवाब के क्षण में मित्रों के साथ से दवाब बेहद काम हो जाता था| वह बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय और अन्य विश्व विद्यालय के छात्रावास में गया | वह कई शहरों के कई छात्रावास में जा चूका था |वह असैन्य अभियंता (सिविल इंजीनियर) था | उसने कई प्रौद्योगिकी संस्थान के छात्रावास निर्माण में अपना योगदान दिया | उसने कई प्रौद्योगिकी संस्थान की शिक्षण भवन बनाने में योगदान दिया | उसने कईविद्यालयों के छात्रावास औरविद्यालय भवन बनाने में योगदान दिया|उसने कई विद्यालय और छात्रावास खोले|वहाँ छोटे -छोटे बच्चों के रहने की भी व्यवस्था थी|बच्चों की देखभाल पर खास ध्यान दिया |बच्चों को देखकर उसे अपने छात्रावास जीवन का स्मरण हो जाता|हालाँकि वे पल जीवन के बेहद कष्टमयपल थे| जीवन से अनुशाशन ,दिनचर्या -पालन,स्वनिर्भरता ,आत्मविश्वाश का गुण उभरता है|एक दूसरे का दर्द बाँटना ,मेल से रहना, व्यक्तित्व-विकास दूसरो की विचार,संस्कृति जानना और अन्य महत्वपूर्ण गुणों का उदय होता है|अद्भुत होता है छात्रावास जीवन | उज्जवल को छात्रावास जीवन के अतीत के पल हमेशा याद आते थे |