बेटी - घर का चिराग

किसी गाँव में संतोष नाम का एक किसान रहता था उसके माता पिता ने बड़े ही धूम-धाम से उसकी शादी सुमन नाम कि एक लड़की से कर दी समय ऐसे ही बीतता गया कुछ दिनों के बाद चेक-अप कराने पर पता चला कि सुमन गर्भवती है ये बात सुनकर पूरा परिवार खुशी से झूम उठा और सुमन कि अच्छे से खातिरदारी व देखभाल में लग गया. गर्भ का पूरा समय हो जाने के पश्चात सुमन ने एक सुन्दर से कन्या को जन्म देती है कन्या के पैदा हो होने पर उसके परिवार में खुशी से ज्यादा दुःख का अनुभव करते है लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता गया कुछ सालो में सुमन ने दो कन्याओ को जन्म दिया| दो बेटियां हो जाने के कारण अब सब लोग सुमन को भला बुरा व परेशान करने लगे

बोलते कि : हम दो-दो लड़कियों का बोझ कैसे उठाएंगे

सुमन तू कलंकनी है हमारे परिवार को चिराग भी नहीं दे सकती |

ऐसा बोलने पर सुमन बेचारी एक ही बात बोलती :

ये सब मेरे हाथ कि बात नहीं है ये तो भगबान ही करते है

ये बात सुनकर उसके घरवाले उसको बात-बात पर प्रताड़ित करते संतोष भी हमेशा अपने घरवालो का ही पक्ष लेता सुमन सबकी बाते चुप-चाप सुनती रहती कभी भी अपने घरवालो को कुछ नहीं बोलती कुछ समय बीत जाने पर सुमन एक बार फिर से गर्भवती होती है लेकिन इस बार भी सुमन एक सुन्दर कन्या को जन्म देती है फिर से लड़की हो जाने पर संतोष और उसके घरवाले बहुत परेशान हो जाते है अपने घरवालो के कहने पर संतोष उस लड़की को उठा कर एक कब्रिस्तान में छोड आता है वापिस आने पर उसके मन् में एक अजीब सी कल्पना जन्म लेती है वो बहुत परेशान हो जाता है मन् के नहीं मानने पर वों उस लड़की को देखने कब्रिस्तान जाता है वों देखता है कि लड़की जोर-जोर से रो रही है भूख के मारे बिलख रही है अपनी बच्ची को रोते हुए देख उसका मन् पिघल जाता है और वह उस बच्ची को उठा कर घर ले आता है उस लड़की को वापिस ले आने पर संतोष के घरवाले उसको बहुत बुरा-भला कहते है लेकिन संतोष चुप रहकर सब सुन लेता है अब एक दिन संतोष कि माँ और उसकी दोनों बड़ी बेटियां कही किसी दूसरे गाँव जा रहे होते है लेकिन रास्ते में मोटर का एक्सीडेंट हो जाता है जिसमे संतोष कि माँ और उसकी दोनों बेटियों कि मृत्यु हो जाती है ये खबर सुनकर संतोष और सुमन बहुत दुखी होते है लेकिन समय के साथ-साथ सब अपने जीवन में व्यस्त हो जाते और इस घटना को भूल जाते है अब संतोष के मन् में फिर से विचार आता है कि उसका भी एक बेटा होना चाहिए जों बुढ़ापे में उसका सहारा बने अब संतोष और सुमन अपना पारिवारिक जीवन जीने में व्यस्त हो जाते है डॉक्टर द्वारा चेक-अप कराने पर पता चलता है कि सुमन फिर से गर्भवती है ये बात सुनकर संतोष को लगा कि इस बार जरुर उसको पुत्र-रत्न कि प्राप्ति होगी ऐसा सोचकर वों सब सुमन का अच्छे से ध्यान रखने लगे इस बार भगबान ने भी संतोष कि सुन ली और इस बार सुमन दो सुन्दर जुड़वाँ लडको को जन्म देती है लडको के पैदा होने पर संतोष और उसके परिवार वाले बहुत खुश होते है घर में खुशी का माहोल हो जाता है गीत संगीत का आयोजन व भोज का प्रबंध उसके परिवार के लोगो द्वारा बड़े ही धूम-धाम से किया जाता है धीरे-धीरे दोनों लड़के बड़े होने लगते है दोनों दाखिला अच्छे स्कूल में कराया जाता है घरवालो द्वारा दोनों लडको को उनकी इच्छा के अनुसार हर वस्तु को उपलब्ध कराते है लेकिन उस बेटी को घर के कामो में व्यस्त रखते न ही उसको पढ़ने के लिए भेजते और वो नादान बेटी अपने माँ बाप दोनों को खुश देखकर ही प्रफूलित हो जाती कभी किसी बात कि जिद नहीं करती |

धीरे-धीरे समय बीतता जाता है अब संतोष के तीनो बच्चे शादी योग्य हो जाते है लेकिन संतोष अपने दोनों लडको कि शादी बड़ी लड़की से पहेले करने का विचार बना लेता है एक अच्छे परिवार का रिश्ता आने पर संतोष अपने दोनों बेटो कि शादी बड़े धूम-धाम से कर देता है दोनों अब दोनों लड़के अपने-अपने परिवार को लेकर शहर चले जाते है

शहर पहुचने पर दोनों लडके अपने पारिवारिक जीवन में व्यस्त हो जाते है और कभी भी अपने माता-पिता का हाल-चाल नहीं पूछते है अपने बेटो के ऐसा किए जाने पर दोनों बहुत ही दुखी रहने लगते है अब संतोष अपनी उस लड़की कि शादी करने के लिए बोलता है जिस को वों कब्रिस्तान में छोड कर आया था लेकिन वों लड़की शादी करने से मना कर देती है संतोष और सुमन दोनों उस लड़की से पूछते है कि बेटी तू अपनी शादी क्यों नहीं करवाना चाहती है तो उसने कहा: मै आप लोगो को अकेला नहीं छोड सकती हू आप ही मेरे लिए मेरे भगवान हो, मै हमेशा आपकी सेवा करना चाहती हू, मै शादी नहीं कराऊंगी

बेटी कि ये बात सुनकर दोनों फूट-फूट कर रोने लगते है और अपने द्वारा किए गए कर्मो को सोच-सोच कर बहुत रोते है संतोष बोलता है :

सुमन मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी जों मैंने लड़के और लड़की में अंतर समझा |

मै अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा ऐसा बोलते हुए संतोष ने अपनी बेटी को अपने गले लगा लिया और बोला ;

मेरी बेटी ही मेरे खानदान का चिराग है

अब संतोष ने एक अच्छे से लडके कि तलाश शरू कर दी किसी रिश्तेदार ने बताया कि एक लड़का है जिसके माँ बाप नहीं है लेकिन वों बहुत संस्कारी और व्यावहारिक है संतोष ने उस लडके को अपना दामाद बना लिया और उस लडके को कहा कि बेटा आज से हम तुम्हारे माता-पिता है अब उसकी बेटी दामाद सब खुशी से रहने लगे लेकिन संतोष आज भी सबको एक ही बात बोलता है “मेरी बेटी ही मेरे घर का चिराग है”

देखता हू जब बेटी का प्रफुल्लित चेहरा,
जों डाले रखता है मेरे मन-प्रसंग पहरा,
कच्ची मिट्टी सी होती है ये बेटियाँ,
देख कर बाबुल की खुशियाँ,

ढूँढ लेती उसमे अपना सवेरा।
कैसे कहूँ कैसी होती हैं ये बेटियाँ?

दोस्तों, इस कहानी के माध्यम से मैं पाठकों से सिर्फ एक ही बात कहना चाहूँगा, कुछ लोग बेटों की चाहत में न जाने कितनी मासूम बेटियों को इस संसार में आने से पहले ही मिटा देते हैं और हम लोगों का भ्रम होता है कि बेटा ही हमारे खानदान का चिराग होता है जबकि बेटियाँ भी किसी से कम नहीं क्यूँ न हम बेटियों को भी अपने खानदान का चिराग समझे

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