खो रही हँसी Rahul Kumar Ranjan
खो रही हँसी
Rahul Kumar Ranjanतुम्हारी हँसी
कहीं खो गयी है शायद
अम्लीय बारिश में
अतीत के ईमारत हो जैसे।
जगमगाते सितारों से
अमावस में चाँद जैसे।
दोपहर की धूप में,
ग़ुम जाती है परछाई जैसे।
बसंत के जाते ही
कोयल की कुहूक जैसे।
पतझड़ में पीपल की
सुखनुमा छाँव जैसे।
घर-आँगन से गुम हुई
गोरैया जैसे।
हाँ ऐसे ही
तुम्हारी हँसी,
हाँ तुम्हारी हँसी
कहीं खो गयी है शायद।